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ध्वीजी अमदावाद चोमासे के पहलां ६९ में काल धर्म प्राप्त हूइथी, मुनिकुंजर श्रीमान् पं० आणंदमुनिजी महाराज ७० का चैत्र वद २ शुक्रवारकों उमरालेमें स्वर्गवास प्राप्त हुवे थे आसरे ३१ साध्वीयां आपश्रीकी विद्यमान हैं और आसरे २५ साधु आपश्री के विद्यमान है और कितनेक शिष्य यति वेषमेभि विद्यमान है, और आपश्रीके तीनठिकाणे पुस्तकोंका संग्रहरूप ज्ञानभंडार विद्यमान है प्रथम वीकानेर २ सुरतवंदरमें ३ मालवा शहर इन्दोरमें है, और आप श्रीके चारित्र पर्यायमें एकंदर चोमासा ४६ व्यतीतहुवा है, और सैतालीसमाचालु है, और आप श्री नित्य एकल आहारी हैं और आप श्री सदा अप्रमादी है, आपश्रीकी ६९ आसरे वर्षकी अवस्था है, तथापि आप श्री जराभि प्रमाद नहिं करते हैं,
और आपश्री परिपूर्ण ज्ञानहासिलकरके पीछे सर्वअशुभक्रियाका त्यागरूप संबर चारित्रकी आराधनाकरनेवाले भये है, सम्यक्चारित्र या भावचारित्र इसीकों कहतें हैं, इसीकों सम्यक्ज्ञानी चारित्री शास्त्र कारफरमातें हैं, इसीलिये दरेक धार्मिकक्रिया ज्ञानपूर्वकहि करना चाहिये, तथाहि शास्त्रसंमति, प्रथमज्ञपरिज्ञा पश्चात् प्रत्याख्यान परिज्ञा पूर्वकहि व्रतादिक करना ऐसा श्रीआचारांग है, और प्रथमज्ञान अने पीछे दया यानेजीवरक्षादि क्रिया है, एसा श्रीदशवकालिक है, ज्ञानपूर्वक त्याग सुपञ्चरुकाण रूपसें श्रीभगवती है इत्यादि अनेक सिद्धान्त है, इसीलिये सिद्धान्तानुसार आपश्रीकी सम्यक्प्रवृत्ति है, अतः सम्यक् ज्ञानी शुद्धप्ररूपक कंचन कामिनी के परिहारक श्रेष्ठ मोक्षमार्गाराधक स्वपरात्मोपकारक सुगुरु हैं, अतः अहो सज्जनो एसे सुगुरुवोंकी आणापालणी शुद्धचित्तसें सेवाकरणी विनयवैयावञ्चकरणी तपसंयमादिक
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