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जैनागम स्तोक संग्रह
८ : बन्ध तत्व के लक्षण तथा भेद प्रकृति बन्ध, स्थिति बन्ध, अनुभाग बन्ध, प्रदेश बन्ध । बन्ध :
क्षीर-नीर, धातु मृत्तिका, पुष्प-इत्र, तिल-तैल इत्यादि की तरह आत्मा के प्रदेश तथा कर्मो के पुद्गल का परस्पर सम्बन्ध होने को बन्ध तत्त्व कहते है।
बन्ध के ४ भेद : १ प्रकृति बन्ध आठ कर्मो का स्वभाव । २ स्थिति बन्ध : आठो कर्मो के जीव के साथ रहने के समय का
मान । ३ अनुभाग बन्ध : कर्मो के तीन मन्दादिक रस । ४ प्रदेश बन्ध : कर्म पुद्गल परमाणु के दल, जो आत्मा के प्रदेश के
साथ बंधे हुए है। इन चार प्रकार के वन्ध का स्वरूप मोदक के दृष्टान्त के समान _ है। जैसे कई प्रकार के द्रव्यो के सयोग से बने हुए मोदक (लड्डू)
की प्रकृति वात-पित्तादि की घातक होती है। वैसे ही आठो कर्म जिस-जिस गुण के घातक होवे वह प्रकृति बन्ध। जैसे वह मोदक पक्ष, मास, दो मास तक रह सकता है सो स्थिति वन्ध । जेसे वह मोदक कटक, तीक्ष्ण रस वाला होता है तैसे कर्म रस देते है सो अनुभाग बन्ध । जसे वह मोदक न्यूनाधिक परिमाण वाला होता है तैसे कर्म पुद्गल परमाणु के दल भी छोटे-बड़े होते है सो प्रदेश बन्ध ।
इस प्रकार बन्ध का ज्ञान होने पर जो यह वन्ध तोड़ेगा वह निराबाध परम सुख पावेगा ।