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धर्मकी आधारशिला - आत्मत्व
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पश्चिमका सन्तकविवर्ड सवर्थ ( Wordsworth ) कहता है- "हमारा जन्म एक ऐसी निद्रित अवस्था है, जिससे पूर्व जन्म के अस्तित्वको अनुभूति विस्मृत हो जाती है । जिस आत्माका शरीर के साथ जन्म होता है वह हमारे जीवनचा एक ऐसा नक्षत्र है जो पूर्व में दूसरी जगह अस्तंगत हुआ था। और जो बड़ी दूर ले माता है ।"
ड्रायडनका कथन भी बड़ा मार्मिक है-"अविनाशी आत्माका विनाश करनेकी क्षमता मृत्यु नहीं है। जब विद्यमान शरीरका मृतिकारूप गरिगमन होता है, तब आत्मा अपने योग्य नवीन आवास स्थलका अन्वेषण कर लेता है एवं अबाध गति से अन्य शरीरमें जीवन तथा ज्योति भर देता हूँ।"
विमल प्रकाश प्राप्त
उत्पन्न होनेवाले
तार्किक-शिरोमणि अकलंङ्क स्वामोसे इस विषयमे अत्यन्त होता है। उनका युक्तिवाद इस प्रकार है- "आत्मा के विषय में ज्ञानके विषय में सभी विकल्पों द्वारा आत्माकी सिद्धि होती है। आत्माके विषय में यदि सन्देह है तो भी मानसिह होता है, क्योंकि, सन्देह अवस्तुको विषय नहीं करता । संशय ज्ञान उभय कोटिको स्पर्श किया करता है । आत्माका यदि अभाव हो तो दो विकल्पोंकी ओर झुकनेवाले ज्ञानका उदय कैसे होगा ? अनध्यवसाय ज्ञान भी जात्यन्धको रूपके समान प्रकृत में बाधक नहीं है। कारण अनादिसे आत्माका परिज्ञान होता आया है। विपरीत ज्ञानके माननेपर भी आत्माका अस्तित्व सिद्ध होता है, पुरुष को देखकर उसमे स्थाणु- रूप विपरीत बोधके द्वारा जैसे स्याणुको सिद्धि होती है, उसी प्रकार आत्माका यथार्थ दोष होगा । आत्मा के विषय में समीचीन बोध माननेपर उसका अस्तित्व अबाधित सिद्ध होता ही है।" (तस्वार्थराजवासिक रा८ )
स्वामी समन्तभद्रा युक्तिवाद इस विपयको और भी हृदय ग्राही बनाता है"जैसे 'हेतु' शब्द 'हेतु' रूप अर्थका बोध होता है, क्योंकि हेतुशब्द संज्ञारूप है, इसी प्रकार 'जीव' शब्द अपने वाच्य रूप 'आत्मा' नामक बाह्य पदार्थको स्पष्ट करता है, क्योंकि 'जोव' शब्द भी संज्ञा रूप है। संज्ञारूप वाचकका विषय-भूत
1. Oar birth is but a sleep and a forgetting,
The soul that rises wits us, our life's star
Hath had elsewhere its setting,
And cometh from afar-Ode on Intimations of
immortality
2. Death had no power the immortal soul to stay. That when its present body turns to clay, Seeks a fresh hotne and with unlessened might, Inspires another frame with life and light.
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