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साहित्य समाज और जैन संस्कृत महाकाव्य
तथापि राजनीति, धर्म आदि के विशेष अध्ययन के लिए राजनीतिशास्त्र एवं धर्मशास्त्र आदि का स्वतन्त्र अस्तित्व भी है । ' ' हरबर्ट स्पेन्सर' 'काम्टे; से असहमत रहते हुए अन्य सामाजिक विज्ञानों की उपेक्षा कर देते हैं तथा केवल राजनीतिशास्त्र को ही 'समाजशास्त्र' से सम्बन्धित मानते हैं । 'सोरोकिन' को 'समाजशास्त्र' एक सामान्य विज्ञान के रूप में मान्य है तथा इसका सम्बन्ध संस्कृति सभ्यता श्रादि से भी है । संक्षेप में 'सोरोकिन' 'समाजशास्त्र' के अन्तर्गत मानव व्यवहारों के राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, वैधानिक तथा नैतिक मूल्यों को स्वीकार करते हैं । इसके लिए उन्होंने एक व्यवस्थित सिद्धान्त का भी प्रतिपादन किया है । ४ निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र के अनुसार गवेषणा की इकाई ( Unit of Investigation) सामाजिक होती है । इसमें मनुष्य का एक व्यक्ति के रूप में नहीं वरन् एक सामाजिक व्यक्ति के रूप में अध्ययन होता है । समाजशास्त्र के अनुसार सामाजिक सम्बन्धों के अन्तर्गत राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, संवैधानिक तथा अन्य शक्ति-साध्य सम्बन्ध भी समाविष्ट होते हैं।
समाज की ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति
'समाजशास्त्र' समाज में प्रचलित मानव व्यवहारों का एक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अध्ययन होने के कारण समाज के विविध तत्त्वों की व्याख्या भी व्यवस्थित रूप से करता है । 'समाजशास्त्र' की यह मान्यता है कि प्रत्येक समाज के 'मूल्य' एवं 'परिस्थितियाँ' एक निश्चित दिशा की ओर मोड़ लेती हैं और इस परिवर्तन के कुछ कारण भी होते हैं । समाजशास्त्रीय अध्ययन की अनेक पद्धतियों में 'ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति', ( The Historical Method in Society) एक महत्त्वपूर्ण एवं लोकप्रिय पद्धति है । प्राचीन काल के सामाजिक अध्ययन के लिये यह पद्धति अत्यधिक उपादेय मानी जाती है । इस पद्धति के अनुसार यह स्वीकार किया जाता है कि वर्तमान समाज प्राचीन सामाजिक परिस्थितियों एवं घटनाओं का ही परिणाम है और इसी प्रकार भावी समाज के स्वरूप - निर्धारण पर भी इसका
१. तेजमलदक, सामाजिक विचार एवं विचारक, अजमेर, १६६१ पृ० ५५-५६ २. वही, पृ० ५६
3. Sorokin, P. A., Society, Culture and Personality, New York, 1948, p. 16
४. Sorokin, Contemporary Sociological Theories, pp. 760-61 ५. शम्भूरत्न त्रिपाठी, समाज शास्त्रीय विश्वकोष, कानपुर, १६६०, पृ० १८ ६. Das, A.C, An Introduction to the Study of Society, pp. 50-51