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गुन || वन चंचल: थिर कररे ॥ १ ॥ श्री . अस जिनँद सुमररे ॥ .
टेर सास उसास बिलास भजन की दृढ
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विस्वास पकररे || अजपा म्यास प्रकाश हि ये बिच ॥ सो सुमग्न जिन बररे ॥२॥ श्री ॥ केंद्र कोध लोभ मद आया । ए. सबही पर हररे || सम्यक दृष्टि सहज ॥ सुख प्रगदै || ज्ञान दशा अनुसरर || ३ || श्री अँस || झूठ प्रएँच जीवन तन धन अरू " सजन सनेही घररे । छिनमें छाड चलें पर भव कूँ || बँध सुभा सुभ थिरेर || श्री ||४| मानस जनम पदा रथ जिनकी || आसा करत असररे । तें पूरब
● शुकृत करिणाय ॥ धरम मरम दिलधररे || ॥ श्री ॥ विश्नसेन नृप विस्नाराणी को नंदन तू न विसररे || सहजै मिटे अज्ञान अवधा
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