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सन्धान-महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा
१३ (Nibelungenlied) तथा फ्रांस का 'सांग ऑफ द रोलां' (Song of the Roland) आदि अन्य देशों में विकसित होने वाले विकसनशील महाकाव्य हैं ।
भारतीय वीर-युग ऋग्वेद के काल में ही प्रारम्भ हो गया था । उत्तर वैदिक काल पर्यन्त पहुँचते हुए भारतीय समाज कृषि एवं पशु-पालन के माध्यम से आर्थिक कठिनाइयों पर भी विजय प्राप्त कर चुका था। इसी युग में महाकाव्यों की पृष्ठभूमि का निर्माण भी होने लगा था, ऋग्वेद की इन्द्र-विषयक शौर्यपूर्ण गाथाएं तथा दानस्तुतियाँ, अथर्ववेद के कुन्ताप मन्त्र एवं शतपथ ब्राह्मण के पारिप्लव आख्यान महाकाव्यों के अंकुर बन चुके थे। वेदों और ब्राह्मण-आरण्यकों में आये हुए ऐसे वीर-आख्यान यह सिद्ध करते हैं कि वे वीर-युग की देन हैं । इन्द्र, अश्विन आदि ऋग्वेद के प्रधान वीर हैं । बार्नेट का मत है कि इन्द्र और अश्विन ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, जिन्हें उनकी वीरता के कारण पौराणिक और निजन्धरी रूप प्रदान किया गया। केगी का भी कहना है कि इन्द्र वेदकालीन आर्यों के ऐसे देवता हैं, जो आदर्श व्यक्ति, वीर, नेता, संरक्षक और सम्राट हैं । वस्तुत: इन्द्र ही वैदिक-काल के महाकाव्य-नायक हैं ।५ महाभारत और रामायण भारतीय वीर-युग के प्रतिनिधि महाकाव्य हैं । इन
१. Shipley, Joseph T. : Dictionary of World Literary Terms,
Boston, 1970, p.100. २. मुसलगांवकर : संस्कृत महाकाव्य की परम्परा,पृ.९३ 3. Keith, A.B. : A History of Sanskrit Literature, London,
1941, p.41 and Winternitz, M. : A History of Indian
Literature, Vol.I, Part I, Calcutta,1959, p.130 ४. "Indra and Ashvina at the beginning came to be
worshipped because they were heroes, men who were supposed to have wrought marvellously noble and valiant deeds in dime far off days, saviours of the afficted, champions of the right, and who for this reason were worshipped after death, perhaps even before death, as divine beings and gradually became associated in their legends and the form of their worship with all kinds of other gods." Lionet D.
Barnett: Hindu Gods and Heroes, London, 1886, p.25. ५. Kaegi : The Rigveda, London, 1886, p.43.