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महाकवि धनञ्जय :व्यक्तित्व एवं कृतित्व (३) पुष्यसेन शिष्य कृत टीका-पुष्यसेन शिष्य कृत द्विसन्धान-महाकाव्य की टीका का हीरालाल जैन तथा ए. एन. उपाध्ये ने भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से १९७० ई. में प्रकाशित द्विसन्धान-महाकाव्य के प्रधान सम्पादकीय में पृ. २० पर उल्लेख किया है। (४) राघवपाण्डवीय प्रकाशिका-यह टीका परवादिघरट्ट के नाम से ख्यात रामभट्ट के पुत्र कवि देवर द्वारा लिखी गयी है। हीरालाल जैन तथा ए.एन. उपाध्ये इस टीका का नाम राघवपाण्डवीय परीक्षा तथा कवि देवर के पिता का नाम रामघट बताते हैं । यह टीका कवि देवर ने अपने आश्रयदाता अरलु श्रेष्ठिन् के लिए लिखी थी। अरलु श्रेष्ठिन् जैन धर्म के प्रति आस्थावान् कर्णाटक के कीर्ति नामक एक बड़े व्यापारी तथा जया के पुत्र थे । कवि देवर ने अपनी टीका के प्रारम्भ में अमरकीर्ति, सिंहनन्दि, धर्मभूषण, श्रीवधदैव तथा भट्टारक मुनि को नमस्कार किया है।३ राघवपाण्डवीयप्रकाशिका की एक ताड़पत्रीय प्रति कन्नड़ लिपि में जैन सिद्धान्त भवन, आरा में उपलब्ध है ।।
द्विसन्धान-महाकाव्य : तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य
द्विसन्धान-महाकाव्य के निर्माण में अन्य संस्कृत काव्यों का भी विशेष प्रभाव रहा है । धनञ्जय ने इसकी रचना के लिये किस प्रकार पूर्ववर्ती काव्यों से प्रेरणा ली, उसका तुलनात्मक पर्यवेक्षण निम्नलिखित विवरणों से स्पष्ट है--
रघुवंश और द्विसन्धान-महाकाव्य
द्विसन्धान-महाकाव्य कालिदास कृत रघुवंश से पर्याप्त अनुप्राणित है। रघुवंश से अनुप्राणित प्रसंगों के आधार पर कहा जा सकता है कि धनञ्जय द्वितीय (अनुकारी) कालिदास ही बन गया है । दशरथ अथवा पाण्डुराज की पत्नियों के दोहद लक्षण का चित्रण करने वाला, निम्न पद्य द्रष्टव्य है१. गुलाबचन्द्र चौधरी : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६,पृ.५२८ २. द्विसन्धान-महाकाव्य का प्रधान सम्पादकीय,पृ.२० ३. जिनरत्नकोश,पृ.१८५ ४. द्रष्टव्य-जैन हितैषी,पृ.१५३-५४