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द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन ज्ञान-विज्ञान१. आयुर्वेद
प्राचीन काल में आयुर्वेद' एक उच्चस्तरीय विषय के रूप में प्रचलित था। द्विसन्धान-महाकाव्य में कपूर की भस्म से थकान दूर करने का उल्लेख उपलब्ध होता है । २. सामुद्रिकशास्त्र
द्विसन्धान में सामुद्रिकशास्त्र सम्बन्धी चर्चा भी आयी है । सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार भ्रू, नेत्र, नासिका, कपोल, कर्ण, ओष्ठ, स्कन्ध, बाहु, पाणि, स्तन, पार्श्व, ऊरु, जंघा और पाद-इन चौदह अंगों में समत्व रहना शुभ माना जाता है । द्विसन्धान में महापुरुषों के लक्षणों में उक्त समत्व की चर्चा आयी है ।२ ३. शकुनशास्त्र
मध्यकालीन भारतीय समाज में शकुनों तथा अपशकुनों का सामाजिक दृष्टि से महत्व अधिक बढ़ चुका था। इसका अनुमान तब लगाया जा सकता है, जब हम देखते हैं कि तत्कालीन शिक्षा-जगत् में भी 'शकुनशास्त्र' एक स्वतन्त्र विद्या के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था । द्विसन्धान में पुत्र-जन्म के अवसर पर आकाश का मेघरहित तथा स्वच्छ हो जाना शुभ शकुन के रूप में वर्णित है, जो शुभ भाग्य का सूचक है।
४. स्वप्नशास्त्र
निमित्तशास्त्र के अन्तर्गत 'स्वप्नशास्त्र' की चर्चा आती है । तत्कालीन समाज में लोगों का धार्मिक दृष्टि से स्वप्नों पर विश्वास था। जैन परम्परा के अनुसार किसी तीर्थंकर के गर्भ में होने पर प्राय: शुभ स्वप्न उसकी माता को दिखायी देते हैं । द्विसन्धान-महाकाव्य में भी गर्भिणी रानी द्वारा स्वप्न में बालचन्द्रमा को उठाकर
१. द्विस., ५.५६ २. वही,३.३३ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री : आदि पुराण में प्रतिपादित भारत,पृ.२७२ ४. द्विस.,३.१४