Book Title: Dhananjay Ki Kavya Chetna
Author(s): Bishanswarup Rustagi
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 287
________________ उपसंहार कालिदास के काव्य-वर्णनों से विशेष प्रभावित हैं । दूसरी ओर द्विसन्धानकार आगामी काव्य-परम्परा के लिये भी दिशा-निर्देशक कवि की भूमिका का निर्वाह करते प्रतीत होते हैं । द्विसन्धान - महाकाव्य को ही यह श्रेय जाता है कि उसने आने वाले समय में चतुस्सन्धान, सप्तसन्धान आदि काव्यों की रचना हेतु मार्ग प्रशस्त किया । २६७ सन्धान शैली चाहे सामान्य काव्यमूलक हो या महाकाव्यमूलक, इसमें शब्द के नानार्थक प्रयोग-वैशिष्ट्य के कारण ही एक ही पद्य में अनेकार्थकता समारोपित होती है । संस्कृत भाषा में विद्यमान नानार्थक शब्दों का विशाल भण्डार संग्रहीत किये बिना सन्धान शैली में काव्य लिखना दुष्कर कार्य है । हम देखते हैं कि ‘अनेकार्थनाममाला' नामक कोश - ग्रन्थ की रचना कर कवि धनञ्जय ने अपनी योग्यता का पहले ही प्रदर्शन कर दिया था । कवि नानार्थक शब्दों का विशेष ज्ञाता था और इन्हीं को विविध अलंकार - विन्यास से मण्डित करते हुए उसने सन्धान-काव्य की शैली को आविष्कृत किया । द्विसन्धान - महाकाव्य की सन्धानात्मक काव्य-शैली तथा उसके अलंकार-विन्यास का मूलमन्त्र शब्दालङ्कारों में निहित है । उनमें से भी श्लेष और यमक का प्रयोग-वैचित्र्य इसका मूलाधार है । इन्हीं दो अलंकारों की विविध भङ्गिमाओं के परिणामस्वरूप धनञ्जय की काव्य-नटी अपने दो रूपों में नर्तन करने लगती है । चित्रालङ्कार की योजनाओं ने भी सन्धान- काव्य को चार चाँद लगाये हैं । धनञ्जय के शब्द क्रीडा सामर्थ्य को ही यह श्रेय जाता है कि उसके एक पद्य में तीन-तीन बन्धों तक की योजना की गयी है । चित्रालङ्कारों के विकास एवं समृद्धि के इतिहास की दृष्टि से धनञ्जय कृत द्विसन्धान-महाकाव्य का असाधारण योगदान स्वीकार किया जाना चाहिए । 1 एक महाकाव्यकार के रूप में धनञ्जय ने युगीन साहित्यशास्त्रीय मान्यताओं का अनुसरण करते हुए ही द्विसन्धान-महाकाव्य के कथानक की रूपरेखा का निर्माण किया । महाकाव्य के शास्त्रीय शिल्प-विधान की लगभग सभी अनिवार्यताओं को यह चरितार्थ करता है और साथ ही नाट्य-संधियों के सफल प्रयोग द्वारा कथानकीय वृत्त को सुदृढ़ बनाने का भी इसमें प्रयास हुआ है। महाकाव्य के युगीन शास्त्रीय लक्षणों में ही यह व्यवस्था दी जाने लगी थी कि राजनैतिक गतिविधियों का महाकाव्य के वर्ण्य-विषयों में विशेष वर्णन किया जाये जैसे युद्ध-प्रयाण, दूत - सम्प्रेषण, युद्ध-मंत्रणा आदि । द्विसन्धान-महाकाव्य में इस प्रकार की राजनैतिक

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