________________
उपसंहार
२७१
मध्यकालीन काव्य आभिजात्य वर्ग के प्रति विशेष झुके हुए थे परन्तु लोक-मूल्यों तथा समसामयिक परिस्थितियों के प्रति वे सर्वथा उदासीन रहे हैं- कम से कम द्विसन्धान-महाकाव्य इस तथ्य की पुष्टि नहीं करता। इसमें तत्कालीन राजनैतिक दशा का यथार्थ चित्रण तो हुआ ही है साथ ही अर्थव्यवस्था, उद्योग व्यवसाय, वेशभूषा, आवास-व्यवस्था, शिक्षा, कला, ज्ञान-विज्ञान एवं स्त्रियों की स्थिति के तत्कालीन स्वरूप को जानने हेतु भी द्विसन्धान के साहित्यिक स्रोत ऐतिहासिकों के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।
इस प्रकार उपसंहृति के रूप में यह कहा जा सकता है कि द्विसन्धान-महाकाव्य अपने नाम को सार्थक करता हुआ न केवल दो समानान्तर कथाओं को ही अपने में समेटता है अपितु द्विविध युग-मूल्यों को भी समन्वयोन्मुखी दिशा प्रदान करता है । मूलत: यह महाकाव्य जैन परम्परा से सम्बद्ध होने पर भी ब्राह्मण संस्कृति की रामकथा एवं पाण्डवकथा को अपना आधार बनाता है। एक आदर्श एवं सन्देशवाहक काव्य के रूप में यह जहाँ परम्परानिष्ठ महाकाव्य के मूल्यों से मर्यादित है वहाँ दूसरी ओर समसामयिक युग-चेतना के मुख्य स्वर से भी यह मुखरित है । इस काव्य का बाह्य पक्ष शब्दाडम्बर एवं कृत्रिम आलंकारिक उपकरणों से जहाँ मण्डित है वहाँ रस और भावों की भी इसमें सफल अभिव्यंजना हुई है । संक्षेप में धनञ्जय का द्विसन्धान-महाकाव्य मात्र एक साहित्यिक वाग्विलास ही नहीं अपितु युगीन जीवन-दर्शन के मानवीय इतिहास की एक दुर्लभ कृति है ।