Book Title: Dhananjay Ki Kavya Chetna
Author(s): Bishanswarup Rustagi
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 289
________________ उपसंहार २६९ लक्ष्मण के द्वारा सूर्पणखा के पुत्र शम्बूक के वध की घटना दिखायी है । भामण्डल' को सीता का भाई बताना तथा 'साहसगति विद्याधर' आदि का वृत्तान्त पद्मपुराणानुसारी कहा जा सकता है । द्विसन्धान-महाकाव्य के इस कथानकीय स्वरूप का तुलनात्मक अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि धनञ्जय एक उदार एवं परम्परानिष्ठ कवि थे। उन्होंने वाल्मीकि रामायण की रामकथा के साथ-साथ जैन पौराणिक रामकथा के तत्त्वों को भी समान महत्व दिया। साम्प्रदायिक आग्रहों से रामकथा के केवल जैनानुमोदित संस्करण को ही स्वीकार करने की प्रवृत्ति द्विसन्धान में नहीं दिखायी देती है। इसी प्रकार अन्य जैन महाकाव्यों में कथानक के बीच में सर्गों के सर्ग ही जैन धर्म-दर्शन आदि के लिये समर्पित हुए हैं किन्तु द्विसन्धान-महाकाव्य में इस प्रकार से धर्म-प्रचार करने की गतिविधियों का भी सर्वथा अभाव है। द्विसन्धान-महाकाव्य के आद्योपान्त कथानक के सन्दर्भ में भी यही देखने को मिलता है कि जैन महाकाव्यों से इसका कथानकीय शिल्प-विधान भिन्न है। प्राय: सभी जैन महाकाव्य नायक की निर्वाण-प्राप्ति पर समाप्त होते हैं परन्तु द्विसन्धान-महाकाव्य निर्विघ्न राज्य-प्राप्ति के साथ ही समाप्त हो जाता है। द्विसन्धान-महाकाव्य की रसयोजना के सन्दर्भ में यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जैन महाकाव्यों की रस व्यवस्था से यह प्रभावित नहीं है। जैनानुमोदित रस परिकल्पना काव्य को शान्त-रस-पर्यवसायी बनाने में विश्वास रखती है परन्तु द्विसन्धान-महाकाव्य में शान्त रस को न तो प्रधानता दी गयी है और नही काव्यको शान्त-पर्यवसायी बनाया गया है। द्विसन्धान-महाकाव्यका कथानक निर्वाण-प्राप्ति की ओर उन्मुख नहीं है अपितु नायक के निष्कण्टक राज्य-प्राप्ति के प्रयोजन तक ही सीमित है। जैसाकि पहले कहा जा चुका है द्विसन्धान वीर एवं शृङ्गार को अन्य सभी रसों की तुलना में अधिक महत्व प्रदान करता है। फलत: समग्र काव्य चेतना वीर रस की विविध अभिव्यक्तियों को मूर्त रूप देने में सफल सिद्ध हुई है । शृङ्गार रस की अवतारणा तत्कालीन सामन्तवादी जीवन-दर्शन से विशेष प्रभावित जान पड़ती है । युद्ध शिविरों में सैनिकों की कामविलास-क्रीडा तथा सलिल-क्रीडा आदि वर्णनों के अवसर पर सम्भोग शृङ्गार को कवि ने विशेष उभार कर प्रस्तुत किया है । कामक्रीड़ा के विविध रूप सम्भोग शृङ्गार के भेदोपभेदों के उदाहरण कहे जा सकते हैं । परवर्ती काल में शृङ्गार रस के काव्यशास्त्रीय स्वरूप को प्रभावित करने में द्विसन्धान-महाकाव्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी। इन

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