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सन्धान - कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
गतिविधियों का विस्तार से वर्णन किया गया है तथा युद्धों से गुञ्जायमान तत्कालीन राजनैतिक वातावरण की भी इसमें सफल अभिव्यञ्जना हुई है ।
हम यह भी देख सकते हैं कि तत्कालीन राजव्यवस्था में सामन्ती भोग-विलास के मूल्य समाज पर विशेष हावी हो चुके थे । सातवीं-आठवीं शताब्दी के महाकाव्य-लेखकों ने लोक- रुचि के आग्रह से ही अपने-अपने महाकाव्यों में सामन्तवादी भोग-विलास की गतिविधियों का विशेष अङ्कन किया है । युद्ध प्रयाण, सलिल क्रीडा आदि द्विसन्धान - महाकाव्य के वर्ण्य विषयों में सामन्ती मूल्यों से अनुरंजित इसी शृङ्गारिक भोग-विलास की चरमाभिव्यक्ति हुई है । इस प्रकार द्विसन्धान-महाकाव्य समसामयिक सन्दर्भों में अपने युगबोध से विशेष प्रभावित है और साथ ही दो राष्ट्रीय प्रकृति के महाकाव्यों - रामायण तथा महाभारत से भी यह अपना सम्बन्ध जोड़े हुए है। युगीन काव्य मूल्यों की दृष्टि से अलंकृत शैली के द्विसन्धान सदृश महाकाव्यों के लिये यह भी आवश्यक माना जाता था कि वे इतिहास-पुराण आदि से अपना कथानक ग्रहण करें ।
द्विसन्धान-महाकाव्य की रामकथा का जो रूप धनञ्जय ने ग्रहण किया है उसके सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने यथारुचि वाल्मीकि रामायण और जैन रामायण की घटनाओं को समान महत्व प्रदान किया है । 'पद्मपुराण' के अनुसार राजा दशरथ की तीन रानियाँ अपराजिता, सुमित्रा व सुप्रजा कही गयी हैं परन्तु द्विसन्धानकार ने वाल्मीकि रामायण के अनुसार ही दशरथ की तीन रानियों का नाम कौशल्या, कैकेयी तथा सुमित्रा दिया है। राजा दशरथ के चार पुत्र वर्णित हैं जिनमें लक्ष्मण व शत्रुघ्न यमल थे । जैन रामकथा में यह स्थिति स्वीकार नहीं की गयी है परन्तु धनञ्जय ने वाल्मीकि रामायण का ही अनुसरण किया है । वाल्मीकि की कैकेयी के समान ही धनञ्जय की कैकेयी को भी राम के राज्याभिषेक के समाचार को जानकर मन:स्ताप होता है तथा वह राजा दशरथ से अपना इच्छित वर माँगती
है ।
जैन रामकथा के पूर्ववर्ती ग्रन्थ विमलसूरि कृत 'पउमचरिय' तथा रविषेणकृत 'पद्मपुराण' का भी द्विसन्धान- महाकाव्य पर बहुत प्रभाव देखा जा सकता है । पद्मपुराण के अनुसार 'खरदूषण' एक ही व्यक्ति है । वह रावण का भाई न होकर बहनोई (सूर्पणखा का पति) है । द्विसन्धानकार ने खरदूषण को रावण के बहनोई के रूप में ही चित्रित किया है । 'पद्मपुराण' के अनुसार ही धनञ्जय ने भी