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द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन
२६३ १२. शिञ्जना' -पाजेब को कहते हैं । शिञ्जना में धुंघरु लगे होते थे । इन । धुंघरुओं से चलते समय ‘झुनझुन' ध्वनि उत्पन्न होती थी। निष्कर्ष
- इस प्रकार द्विसन्धान-महाकाव्य पुरातन सांस्कृतिक कथानक से अनुप्रेरित होने के बाद भी तत्कालीन युगबोध एवं समसामयिक परिस्थितियों से पर्याप्त प्रभावित है। सातवीं शताब्दी ई. के उपरान्त संक्रमण-कालीन युग-चेतना की दृष्टि से जहाँ साहित्य कृत्रिमता एवं शब्दाडम्बर की प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख हो चुका था वहाँ राज-दरबारों के प्रश्रय में रचित होने वाले काव्य तत्कालीन सामन्तशाही राजचेतना और आभिजात्य वर्ग के सौन्दर्योपभोग की गतिविधियों को विशेष महत्व दे रहे थे। द्विसन्धान-महाकाव्य में उपलब्ध सांस्कृतिक साम्रगी इस दृष्टि से महत्वपूर्ण कही जा सकती है।
महाकाव्य की शौर्यपूर्ण राजनैतिक गतिविधियों को तत्कालीन महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षणों में भी स्थान दिया गया था। इसी परम्परा को चरितार्थ करते हुए द्विसन्धान-महाकाव्य में राजनैतिक जन-जीवन को विशेष उभार कर प्रस्तुत किया गया है।
तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों की इतिहास सम्मत घटनाएं इस तथ्य का प्रमाण हैं कि विभिन्न राजदरबारों में धनञ्जय सदृश वाणी-कुशल कवियों को विशेष प्रोत्साहित किया जाता था ताकि वे साहित्य-सृजन के माध्यम से राजा-महाराजाओं के वीरतापूर्ण कृत्यों एवं उनकी सैन्यपरक गतिविधियों को संग्रथित कर सकें । द्विसन्धान-महाकाव्य के लेखक ने इस युगीन प्रवृत्ति को अत्यन्त कौशलपूर्ण शैली में उपन्यस्त किया है । तत्कालीन शासन-तंत्र एवं परराष्ट्र-नीति परक विचार जहाँ युगीन राजनैतिक दशा का मूर्त रूप उपस्थित करते हैं वहाँ दूसरी
ओर राजा के आदर्श मूल्यों तथा राजधर्म की संस्थागत परम्पराओं का भी इनमें निरूपण हुआ है । प्राचीन राजशास्त्र के धर्मशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थों के साथ इनकी तुलना भी की गयी है । शासन-व्यवस्था के विविध पक्षों की दृष्टि से महाकाव्य की सामग्री अत्यन्त समृद्ध है । इसी प्रकार युद्ध-प्रयाण, युद्ध-शिविर, अस्त्र-शस्त्र आदि सैन्य-व्यवस्था तथा राजनैतिक गतिविधियों पर भी महाकाव्य के स्रोत विस्तृत प्रकाश डालते हैं। १. विस., ७.४३