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सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
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२. अवतंस' – अवतंस प्राय: पल्लवों तथा पुष्पों के बनते थे । नेमिचन्द्र ने पद-कौमुदी टीका में इसे कर्णाभरण माना हैं ।२
३. कर्णिकारे – कानों की बालियों को कहते हैं ।
४. एकावली ४ – मोतियों की एक लड़ी की माला को कहते हैं ।
५. मुक्तावली - यह कण्ठ तथा शिर दोनों का आभूषण माना गया है । किन्तु कण्ठाभरण के रूप में यह एकावली से भिन्न प्रतीत होता है ।
६. कटक६— कड़े के समान आभूषण है ।
७. कंकण – इसे हाथ की दोनों कलाइयों में पहना जाता था । ८. केकर' – भुजान्तर्वर्ती आभूषणः ।
९. कांची ९ - इसे मेखला भी कह सकते हैं । इसके पहनने का स्थान नीविबन्ध वाला जंघा - प्रदेश था ।
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१०. मेखला१° –कांची सदृश आभूषण । यह भी जघन प्रदेशों पर धारण किया जाता था ।
११. ऊरुजाल११ – कटिप्रदेश में धारण किया जाने वाला आभूषण, किन्तु यह मेखला से भिन्न था । १२ पद कौमुदी टीका में इसे मेखला का पर्यायवाची ही माना गया है । १३
१.
द्विस, १.२९
२ . वही, १.२९ पर पद कौमुदी टीका, पृ. १५
३.
वही, १.४३
४. वही, १.२९
वही,१.४३
५.
६. वही, ८
,८.४१
वही,३.३१
७.
८. वही, ७.११
९. वही, १.४३
१०. वही, १५.४४
१९. वही, १.२९
१२. डॉ. मोहन चन्द: जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज, पृ. ३१० १३. द्विस,९.२९ पर पद कौमुदी टीका, पृ. १५