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द्विसन्धान-महाकाव्य का सन्धानात्मक शिल्प-विधान
चतुर्थ सर्ग राघवपाण्डवारण्यगमनवर्णनम्
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रामकथा - इस सर्ग में वृद्धावस्था को प्राप्त दशरथ द्वारा वैराग्य लेने का निश्चय और राम के राज्याभिषेक की तैयारी का वर्णन है । राज्याभिषेक से ईर्ष्यायुक्त होकर कैकेयी द्वारा दशरथ से वर रूप में राम-बनवास माँगना । दशरथ वैराग्य ले लेने पर राम द्वारा लक्ष्मण के साथ अरण्य-गमन तथा नर्मदा-तीर पर पहुँचने का वर्णन हुआ है ।
पाण्डवकथा - इस सर्ग में वृद्धावस्था के चिह्नों को देखकर परिग्रह से विरक्त पाण्डु द्वारा राजनीति- शिक्षा के उपरान्त युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की तैयारी का वर्णन है । धृतराष्ट्र से उत्पन्न कौरवों के द्यूत-क्रीड़ा में जीत जाने पर युधिष्ठिर का भाइयों के साथ वन-गमन, तथा नर्मदा तीर पर पहुँचने का वर्णन हुआ है I
पञ्चम सर्ग तुमुलयुद्धव्यावर्णनम्
रामकथा-राम का दण्डकारण्य में पहुँचना । लक्ष्मण द्वारा सूर्पणखा के पुत्र शम्बुकुमार की अपमृत्यु या कीचक वन का लक्ष्मण द्वारा काटा जाना । पुत्र-मृत्यु के कारण मन में प्रतिशोध की भावना होने पर भी सूर्पणखा का लक्ष्मण के सौन्दर्य पर मोहित हो जाना। कामपूर्ति के लिये कहने पर लक्ष्मण द्वारा सूर्पणखा का अपमान । अपमानित सूर्पणखा का लक्ष्मण को कष्ट पहुँचाने का संकल्प । तदनन्तर सूर्पणखा की प्रेरणा से खर-दूषण का राम-लक्ष्मण से युद्ध करने के लिये सेना सहित प्रयाण । युद्ध-वर्णन ।
पाण्डवकथा - पाण्डवों का मत्स्य देश की विराट् भूमि में पहुँचना । विराट् भूमि में विराट्राज के साले कीचक का द्रौपदी पर मोहित होना तथा उससे प्रेम - निवेदन करना | द्रौपदी द्वारा कीचक का अपमान । कीचक का द्रौपदी को बलपूर्वक उठा लाने के निश्चय से उसके पास जाना । कीचक की नीच भावना को जानकर भीम द्वारा कीचक से संघर्ष । संघर्ष में अपमानित होने पर तपस्या द्वारा कीचक का शरीर को कष्ट पहुँचाने का निश्चय । बलिष्ठ कीचक के वधोपरान्त स्वार्थसिद्धि हेतु विपुल गोधन को चुराने के लिये दुर्योधन का सेना भेजना । युद्धवर्णन |