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अलङ्कार- विन्यास
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यहाँ सूर्पणखा की कामावस्था (उपमेय) और परिश्रम से होने वाली अवस्था (उपमान) के सादृश्य की सम्भावना की गयी है, अतः उत्प्रेक्षा अलङ्कार है । इसी
प्रकार
नृणामसीनां वसुनन्दकानां पार्श्वोपरोधं स्फुरतां प्रवाहाः । स्विन्दारुणानां विरराजिरेऽमी द्रुता इव त्रापुषजातुषौघाः ॥ १
यहाँ सैनिकों की श्वेत तलवारों तथा उनके लाल हाथों की कान्ति के प्रवाह एवं शीशा और लाह के प्रवाह में सादृश्य की सम्भावना की गयी है, अत: उत्प्रेक्षा अलङ्कार है ।
६. अतिशयोक्ति
जब उपमान के द्वारा उपमेय का ज्ञान हो या उपमान उपमेय का निगरण कर उसके साथ अभेद-स्थापन करे, तो वहाँ अतिशयोक्ति अलङ्कार होता है । २ अभिप्राय यह है कि उपमान के साथ उपमेय का अभेदत्व या अभिन्नता ही अतिशयोक्ति अलङ्कार में अतिशय कथन है । द्विसन्धान में अतिशयोक्ति अलंकार का विन्यास निम्न प्रकार से हुआ है—
कुसुमं धनुर्मधुलिहोऽस्य गुणः शुककूजितं समरतूर्यरवः ।
मदनस्य साधनमिदं प्रचुरं सुलभं न साध्यमिह तद्विपि ॥ ३
यहाँ कामोत्तेजक सामग्री - पुष्पराशि, भ्रमरपंक्ति तथा शुक आदि की कूज युद्ध सामग्री धनुष, ज्या तथा युद्ध-भेरियों की ध्वनि का निवारण कर उसके साथ अभेद स्थापित किया है, अत: अतिशयोक्ति अलङ्कार है । इसी प्रकार -
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भुवस्तलं प्रतपति संभ्रमन् रविः
शशी चरन् स्वयमभिनन्दयत्ययम् । चरैः स्थितः पुरि सचराचरं जगत्
परीक्ष्य यः स्म तपति सन्धिनोति च ॥ ४
द्विस, ५.४०
१.
२. ‘सिद्धत्वेऽध्यवसायस्यातिशयोक्तिर्निगद्यते ॥', सा.द., १०.४६
३.
४.
द्विस., १२.२७
वही, २.१५