________________
२३६
सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
द्विसन्धान के विवरणानुसार बाण के अनेकानेक प्रकार उस समय प्रचलित - शिलीमुख, शर, पतत्रिरे, रोपण, कण', शितार्द्धचन्द्रक
थे । यथा
आदि ।
दिव्यास्त्र
द्विसन्धान-महाकाव्य में घनघोर युद्ध के अवसर पर कुछ दिव्यास्त्रों के प्रयोग का उल्लेख भी आया है । ऐतिहासिक दृष्टि से ये अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं । इनका उल्लेख रामायण-महाभारत आदि ग्रन्थों से प्रभावित जान पड़ता है । ये दिव्यास्त्र निम्नलिखित हैं
1
१. नागपाश – सर्प बरसाने वाला अस्त्र ।
२. गरुड़ास्त्र' – सर्पास्त्र का निवारक अस्त्र ।
३. आग्नेयास्त्र' – युद्धभूमि में अग्नि फैलाने वाला अस्त्र ।
४. मेघास्त्र१° – वृष्टि संचारक अस्त्र । आग्नेयास्त्र का निरोधक अस्त्र ।
५. प्रस्वापनास्त्र११ – सेना में मूर्च्छा फैलाने वाला अस्त्र ।
(ख) सुरक्षात्मक आयुध
सुरक्षात्मक आयुधों में कवच १२ अथवा वर्म तथा खेटक १३ (ढाल) प्रमुख
१. द्विस, ६.८
२.
३.
४.
वही,६.२१,७.२३
वही, ६.१६
वही,६.२६
वही, ६.२४
वही, ६.१९
५.
६.
७. वही,१८.४४
८.
वही, १८.५२
९. वही,१८.३६ १०. वही, १८.४१
११. वही, १८.१५
१२ . वही, ५.३८
१३. वही, १६.३७