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द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन
२५३ २.मोक्ष
पद्मपुराण के अनुसार यथाक्रम ध्यान की श्रेणियों पर आरूढ़ होते हुए चार घातिया कर्मों का नाश हो जाने पर भगवान् को केवल ज्ञान आदि अनन्त-चतुष्टय लक्ष्मी प्राप्त होती है। द्विसन्धान में भी इसी चार घातिया कर्मों के क्षय से मोक्ष-लक्ष्मी की प्राप्ति का अंकन हुआ है ।२ ३.मोक्षमार्ग
तत्वार्थ सूत्र के अनुसार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक् चारित्र-रत्नत्रय मोक्षमार्ग है । द्विसन्धान में भी उक्त रत्नत्रय को केवलज्ञान अथवा मोक्ष की उपलब्धि में साधक माना गया है। ४. सम्यग्दर्शन
तत्वार्थसूत्र में तत्वार्थ के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहा गया है ।५ द्विसन्धान में भी मूल तत्त्व में श्रद्धा को बढ़ाना सम्यग्दर्शन माना गया है ।६
शिक्षा
सातवीं-आठवीं शती ईस्वी में भारतीय राज-व्यवस्था के अस्त-व्यस्त हो जाने का कुप्रभाव शैक्षिक वातावरण पर भी पड़ा । इस युग में सामन्त राजा युद्धों में ही उलझे रहे, फलत: सार्वजनिक शिक्षा का उचित प्रचार व प्रसार नहीं हो पाया। किन्तु राज-प्रासादों तथा धनिक वर्ग के राजकुमारों के लिये शिक्षित होना अनिवार्यता भी थी । यदि राजकुमार शिक्षित न हों तो राज्य घुण लगी लकड़ी के समान खोखला हो जाने की सम्भावना की जाती थी।
__द्विसन्धान के अनुसार १६ वर्ष की आयु तक राजकुमारों द्वारा वर्णमाला ज्ञान तथा अंकगणित की शिक्षा सहित विद्याएं प्राप्त कर लेने के उल्लेख प्राप्त होते
१. पद्मपुराण,४.२१-५२ २. द्विस,१.१ तथा इस पर पद-कौमुदी टीका ३. तत्वार्थ सूत्र १.१ ४. द्विस,१२.४९ ५. 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्',तत्वार्थ सूत्र,१.२ ६. द्विस.,१८.१४३ ७. वही, ३.४