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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना २. क्षौम' -रेशमी वस्त्र । इसको परिधान वस्त्र के रूप में भी स्पष्ट किया जाता है।
३. अंशुक – परिधान वस्त्र । प्राय: स्त्रियों के सन्दर्भ में इसका अधिक प्रयोग हुआ है । अनुवादक इसे साड़ी के रूप में स्पष्ट करते हैं।
४. दुकूल -ओढ़नी अथवा दुशाला।
५. कम्बल' - परिधान वस्त्र । द्विसन्धान में मणिमय कम्बल का उल्लेख भी हुआ है ।६
६. उत्तरीय – शरीर के ऊपरी भाग को आच्छादित करने वाला स्त्रियों का
वस्त्र।
७. अन्तरीय --शरीर के जंघा आदि निम्न भागों को ढकने वाला स्त्रियों का वस्त्र । इसे कटिवस्त्र भी कहा गया है ।
८. कञ्चक'० –स्तन आदि ढकने वाला स्त्रियों का वस्त्र ।
मध्यकाल में भारतीयों का भोजन साधारणतया गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, दूध, घी, गुड़ और शक्कर था। श्री ओझा अनहिलवाड़े के प्रसंग में अल इदरिसी को उद्धृत करते हुए लिखते हैं- वहाँ के लोग चावल, मटर, फलियाँ, उड़द, मसूर, मछली और अन्य पशुओं को, जो स्वयं मर गये हों, खाते हैं, क्योंकि वे कभी पशु-पक्षियों को मारते नहीं। महात्मा बुद्ध से पूर्व मांस का प्रचार बहुत था। जैन
और बौद्ध धर्म के कारण शनै: शनै: यह कम होता गया, हिन्दू-धर्म के पुनरभ्युदय १. द्विस., १.३३ २. वही,१५.३५ ३. वही,१.३७ ४. वही,१.३३ ५. वही ६. वही,१४.११ ७. वही,१८.४ ८. वही ९. वही,१२.३६ १०. वही,१.४ तथा ३.१३