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द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन
२४९ के समय जब बहत से बौद्ध हिन्द हए. वे अहिंसा और शाकाहार का धर्म भी साथ लाये । द्विसन्धान में भात, जिसे अन्धस्' कहा गया है तथा इक्षुरस आदि खान-पान की विविध वस्तुओं की प्रासंगिक रूप से चर्चा आयी है।
इसी प्रकार इस युग में मद्यपान का प्रचार भी प्राय: नहीं था। द्विजों को तो शराब बेचने की भी आज्ञा नहीं थी । ब्राह्मण तो मद्य बिल्कुल नहीं पीते थे। अल मसऊदी के अनुसार यदि कोई राजा मदिरा पी लेता था तो वह राज्य करने के योग्य नहीं समझा जाता था। परन्तु शनैः शनैः क्षत्रियों में मदिरा का प्रचार बढ़ता गया।४ वात्स्यायन ने कामसूत्र में विशेष रूप से यह लिखा है कि श्रीमन्त नागरिक लोग बाग-बगीचों में जाकर मदिरापान आदि कर सकते हैं । धनञ्जय ने राजा तथा सेना के विश्राम-शिविरों में, उद्यान-विहार आदि अवसरों पर तथा कामकेलि के सन्दर्भ में मद्यपान का विशेष चित्रण किया है।६ .
(ग) सामाजिक परिवेश धर्म
सातवीं-आठवीं शताब्दी धार्मिक दृष्टि से एक संक्रमणकालीन युग-चेतना से विचरण कर रही थी। वैदिक धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो रहा था, साथ ही जैन तथा बौद्ध धर्म का भी विशेष प्रचार-प्रसार बढ़ रहा था। जैन धर्म इस समय अनेक प्रान्तों में राजधर्म के रूप में प्रतिष्ठित था तो दूसरी ओर जैनाचार्यों ने इसे सामाजिक दृष्टि से लोकप्रिय बनाने की दिशा में भी प्रयत्न करने प्रारम्भ कर दिये थे। आर्थिक वातावरण में वैदिक तथा जैन धर्म के मध्य पारस्परिक स्पर्धा भावना बढ़ती जा रही थी तो दूसरी ओर इन दोनों धर्मों की आचार-संहिता में एक-दूसरे धर्म की लोकप्रियता के तत्त्व भी समाविष्ट होते जा रहे थे।
१. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा :मध्यकालीन भारतीय संस्कृति,इलाहाबाद,१९६६, पृ.५० २. द्विस,१.३ ३. वही,१०.१ ४. गौरी शंकर हीराचन्द ओझा :मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, पृ.५१ ५. वही ६. द्विस.१७.५३-८७