SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना २. क्षौम' -रेशमी वस्त्र । इसको परिधान वस्त्र के रूप में भी स्पष्ट किया जाता है। ३. अंशुक – परिधान वस्त्र । प्राय: स्त्रियों के सन्दर्भ में इसका अधिक प्रयोग हुआ है । अनुवादक इसे साड़ी के रूप में स्पष्ट करते हैं। ४. दुकूल -ओढ़नी अथवा दुशाला। ५. कम्बल' - परिधान वस्त्र । द्विसन्धान में मणिमय कम्बल का उल्लेख भी हुआ है ।६ ६. उत्तरीय – शरीर के ऊपरी भाग को आच्छादित करने वाला स्त्रियों का वस्त्र। ७. अन्तरीय --शरीर के जंघा आदि निम्न भागों को ढकने वाला स्त्रियों का वस्त्र । इसे कटिवस्त्र भी कहा गया है । ८. कञ्चक'० –स्तन आदि ढकने वाला स्त्रियों का वस्त्र । मध्यकाल में भारतीयों का भोजन साधारणतया गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, दूध, घी, गुड़ और शक्कर था। श्री ओझा अनहिलवाड़े के प्रसंग में अल इदरिसी को उद्धृत करते हुए लिखते हैं- वहाँ के लोग चावल, मटर, फलियाँ, उड़द, मसूर, मछली और अन्य पशुओं को, जो स्वयं मर गये हों, खाते हैं, क्योंकि वे कभी पशु-पक्षियों को मारते नहीं। महात्मा बुद्ध से पूर्व मांस का प्रचार बहुत था। जैन और बौद्ध धर्म के कारण शनै: शनै: यह कम होता गया, हिन्दू-धर्म के पुनरभ्युदय १. द्विस., १.३३ २. वही,१५.३५ ३. वही,१.३७ ४. वही,१.३३ ५. वही ६. वही,१४.११ ७. वही,१८.४ ८. वही ९. वही,१२.३६ १०. वही,१.४ तथा ३.१३
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy