________________
द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन
२४७ इसके अतिरिक्त निरन्तर व्यापार-विनिमय, क्रय-विक्रय आदि की गतिविधियों के लिये नगरों का विशेष महत्व रहा था। द्विसन्धान-महाकाव्य में आये एक उल्लेख के अनुसार नगरों में झुग्गी-झोंपड़ियों जैसे मकानों के अभाव की सूचना प्राप्त होती
द्विसन्धान-महाकाव्य में नगरों के वास्तुशास्त्रीय पक्ष का उल्लेख भी हुआ है । प्राय: नगर परिखा से आवेष्टित होते थे और इनमें जल भरा रहता था। नगर के मुख्य-द्वार को गोपुर कहा जाता था। द्विसन्धान में गोपुर का वर्णन भी हुआ है। ऐसे गोपुरों को प्राय: झण्डे आदि से सजाया जाता था। नगरों को बहुत ऊँचे प्राकारों द्वारा आवेष्टित किया जाता था।६ इनको परिधि भी कहा गया है। एक अन्य स्थल पर प्राकार को शाल संज्ञा से भी अभिहित किया गया है । वेशभूषा एवं खान-पान
द्विसन्धान-महाकाव्य में प्रचलित वेश-भूषा के अन्तर्गत सूती वस्त्र तथा रेशमी वस्त्रों का उल्लेख हुआ है । इस समय तक वस्त्रों को सुई से सीकर तैयार किया जाने लगा था ।१० केवल नये वस्त्र सीने का ही नहीं पुराने वस्त्रों के नवीकरण करने का उल्लेख भी द्विसन्धान में आया है ।११ द्विसन्धान में निम्नलिखित स्त्रियों तथा पुरुषों के वस्त्रों का उल्लेख मिलता है
१. पट१२ –साधारण वस्त्र ।
१. द्विस,२.२८ २. वही,१३६ ३. वही,१.१९ ४. वही,८.४६ ५. वही,९५१ ६. वही,१.२१ ७. वही ८. वही,८४६ ९. वही, १.३३ १०. वही ११. वही, १.४ १२. वही,१३३