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द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन
(१) मौल-वंश परम्परागत क्षत्रिय सेना, (२) भृतक - वेतन भोगी सेना, (३) श्रेणी-व्यापारियों की सेना, (४) आरण्य - भील आदि जंगली जातियों की सेना, (५) दुर्ग- दुर्ग की सेना तथा (६) मित्र-मित्र राजाओं की सेना।
इन षड्विध सेनाओं के रूप से स्पष्ट है कि क्षत्रिय वंश-परम्परागत पद्धति से सैन्य-व्यवसाय के अधिकारी थे ।१ मध्यकालीन भारत के प्रारम्भिक चरणों में वैश्य वर्ग का मुख्य व्यवसाय वाणिज्य रहा था तथा शूद्र श्रम सम्बन्धी कार्य करते थे, श्रम एवं वितरण की समवेत प्रक्रिया से जुड़े रहने के कारण वैश्यों एवं शद्रों में पारस्परिक नैकट्य आ गया था ।२ फलस्वरूप व्यवसाय विभाजन में पहले जैसा अन्तर इस काल में दिखायी नहीं देता। उद्योग-व्यवसाय(१) कृषि उद्योग
___मध्य युग में कृषि एक प्रमुख व्यवसाय था । आर्थिक उत्पादन के सन्दर्भ में भी कृषि अत्यन्त महत्वपूर्ण रही है । द्विसन्धान-महाकाव्य में फसल काटने, जुताई करने, रुपाई करने आदि कृषि सम्बन्धी विभिन्न गतिविधियों का सजीव चित्रण हुआ है । सम्भवत: धान उस समय की विशेष फसल रही होगी, इसलिए पंकमय भूमि में धान की फसल के अच्छे होने के विशेष उल्लेख मिलते हैं । धान की वृद्धि के लिये सूर्य की धूप आवश्यक थी, किन्तु वृक्ष की छाया से धानांकुर ही नहीं फूटते, ऐसी कृषिपरक मान्यता भी प्रचलित थी।
१. तु.-नेमिचन्द्र शास्त्रीः संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान,पृ.५३२ २. द्रष्टव्य-मोहनचन्द : जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज,पृ.२०७-२०९ ३. 'जलाशयं दिशि दिशि पङ्कजीविनं नवोत्थितं नियतिषु देशकालयोः।
विमर्च षष्ठिकमिव विद्विषं भुवि प्ररोपयन्नतुलमवाप यः फलम् ॥',द्विस.,२.२३ ४. वही, ४.१५