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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना है। उनके अनुसार प्रभु-शक्ति आद्या-शक्ति होनी चाहिए, मन्त्र-शक्ति द्वितीया तथा उत्साह-शक्ति तृतीया ।२ षाड्गुण्य
महाभारत, अर्थशास्त्र, मनुस्मृति', शुक्रनीतिसार आदि राजनीति-शास्त्र के ग्रन्थों में प्रतिपादित शासन-तन्त्र के सन्धि, विग्रह, यान, आसन , संश्रय तथा द्वैधीभाव-इन षड्गुणों का धनञ्जय ने उल्लेख करते हुए इन्हें योगक्षेम के उद्गमव्यायाम तथा शम की दृष्टि से उपादेय माना है । संक्षेप में संधि-दो राज्यों में मित्रतापूर्ण एवं शान्तिपूर्ण सम्बन्ध, विग्रह-संघर्ष अथवा युद्ध, यान-यात्रा अर्थात् युद्ध-प्रयाण और निर्बल राजा के नगर की घेराबन्दी, आसन-युद्ध का कृत्रिम भय प्रदर्शित करना किन्तु स्वयं को असमर्थ देखकर युद्ध के प्रति निरुत्साही हो जाना, संश्रय-किसी अन्य शक्तिशाली राजा का आश्रय लेना तथा द्वैधीभाव- सन्धिविग्रह दोनों का प्रयोग अर्थात् शत्रु से मित्रता एवं शत्रुतापूर्ण व्यवहार -परराष्ट्र
'तिसृषु शक्तिषु प्रभुमन्त्रोत्साहलक्षणासु स्वपरज्ञानविधायिन्यः प्रभुमन्त्रोत्साहशक्तिरूपास्तिस्रः शक्तयो भूभृतां विभूतिहेतवः।' उक्तञ्चतिस्रो हि शक्तयःस्वामिमन्त्रोत्साहोपलक्षणाः। स्वपरज्ञानविधायिन्यो राज्ञा राज्यस्य हेतवः॥',
द्विस.,२.१४ पर पद-कौमुदी टीका,पृ.२९ २. 'तथा चोक्तम्
प्रभुशक्तिर्भवेदाद्या मन्त्रशक्तिद्वितीयका। तृतीयोत्साहशक्तिश्चेत्याहुः शक्तित्रयं बुधाः॥',
द्विस,११.११ पर पद-कौमुदी टीका,पृ.२०३ ३. 'वृद्धिक्षयौ च विज्ञेयौ स्थानं च कुरुसत्तम ।
द्विसप्तत्यां महाबाहो ततः षाड्गुण्यजा गुणाः॥'महाभारत,आश्रमवासिक पर्व,६६ 'सन्धिविग्रहासनयानसंश्रयद्वैधीभावाः षाड्गुण्यमित्याचार्याः।',अर्थशास्त्र,७.१ 'सन्धि च विग्रहं चैव यानमासनमेव च।
द्वैधीभावं संश्रयं च षड्गुणांश्चिन्तयेत्सदा ॥',मनुस्मृति,७.१६० ६. शुक्रनीतिसार,४.१०६५-६६
'किं व्यायामो यो विहीनःशमेन व्यायाम यः प्रेक्षते किं शमस्तौ । योगक्षेमस्यैतयोः षड्गुणास्ते योनिः -- ॥'द्विस,११.१५ पर एतयोर्व्यायामशमयोः ते षड्गुणाः सन्धिविग्रहयानासनसंश्रयद्वैधीभावलक्षणाः योनिः स्युः पद-कौमुदी टीका, पृ.२०४