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६. पुरोहित १
पुरोहित का पद भी शासन व्यवस्था के सन्दर्भ में अतिमहत्वपूर्ण था । यह धर्म, ज्योतिष सम्बन्धी कार्यों में राजा का मार्गदर्शन करता था । यह नीतिशास्त्र, व्यूह-रचना आदि में प्रवीण होता था । युद्ध-प्रयाण के समय राजा के साथ रहता था । विजय प्राप्ति के लिये कवच आदि पहनकर युद्ध भी करता था ।
७. कोषाध्यक्ष
सन्धान - कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
पद-कौमुदी टीका में इसका धनाध्यक्ष के रूप में उल्लेख आया है । यह राजा के कोष को बढ़ाने का प्रयत्न करता था, अत: इसका स्थान भी महत्वपूर्ण माना गया है ।
८. दैवज्ञ
पद-कौमुदीकार ने इसका ज्योतिःशास्त्रज्ञ शब्द से उल्लेख किया है । ३ राज्याधिकारियों में इसका कार्य पुरोहित से भिन्न माना गया है । दैवज्ञ नक्षत्र, लग्न आदि की सूचना देने का कार्य करता था, जबकि पुरोहित धार्मिक क्रिया-कलापों को करता था । दैवज्ञ पुरोहित की भाँति राजनैतिक गतिविधियों से सम्बद्ध नहीं होता था ।
९. महत्तर
राज्य के सभी कार्य-अकार्य इसकी जानकारी में रहते थे । शुल्क आदि की घोषणा इसी के परामर्श से होती थी ।
१०. भाण्डागा
शस्त्रास्त्र भण्डार के उच्चाधिकारी को 'भाण्डागारी' कहकर स्पष्ट किया जाता है । डॉ. मोहनचन्द ने भाण्डागारी को आयुधागारिक के तुल्य माना है । *
२.
१. द्विस., ३.९, १९; ४.३७ तथा द्रष्टव्य - पी.वी. काणे : धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग २,
पृ. १३३
द्विस, २.२२ पर पद-कौमुदी टीका
३.
वही
४. डॉ. मोहन चन्द : जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज, पृ.१.१६