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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना (कौशल्या) पुत्र को वन भिजवाकर अपने पुत्र को उत्तराधिकारी बनवाने का चित्रण किया गया है। राज्याभिषेक
प्राय: सभी जैन महाकाव्यों में राज्याभिषेक का एक महोत्सव के रूप में वर्णन किया गया है। द्विसन्धान -महाकाव्य में भी राज्याभिषेक महोत्सव का विस्तृत वर्णन हुआ है। वहाँ यह महोत्सव राजा एवं प्रजा दोनों के लिये ही हर्षोन्मादक-अवसर था, इसीलिए सारा नगर तथा नगरवासी भलीभाँति सज्जित दर्शाये गये हैं। राज्याभिषेक का समय
राज्याभिषेक के समय राजकुमार की निश्चित आयु क्या हो, इस विषय में प्राय: कोई स्पष्ट एवं सुदृढ़ नियम नहीं मिलते । प्राय: राजकुमार के युवा होने, शिक्षा पूर्ण करने तथा विवाहोपरान्त ही राज्याभिषेक किया जाता था । अथवा, राजा जब समझे कि वह अब वृद्ध हो चुका है और स्वयं राजकाज सम्भालने में असमर्थ है, तब वह राजकुमार का राज्याभिषेक करने की इच्छा करता था। राजा तथा उसका मन्त्रिमण्डल
मध्यकालीन शासन-व्यवस्था में महाराजाधिराज' ही सम्पूर्ण राज्यतन्त्र का एकमात्र स्वामी होता था। आदर्शात्मक मापदण्डों के परिप्रेक्ष्य में स्मतिकारों आदि ने राजा को यह निर्देश दिये हैं कि वे अपना शासन मन्त्रियों आदि के परामर्शों के अनुसार चलायें । राजधर्म के नियमों के अनुसार राजा के लिये यह आवश्यक था कि वह मन्त्रिमण्डल को भी विश्वास में ले। राजा हर्षवर्धन इसी प्रकार का १. द्विस,४.३४ २. डॉ.मोहन चन्दःजैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज,पृ.९२ ३. द्विस,४.२२-२८ ४. वही,४१-११ 4. Panikar, K.M. : Shri Harsha of Kannauj, Bombay, 1962,
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६. मनुस्मृति,७.५५-५६; याज्ञवल्क्य ७. कौटिलीय अर्थशास्त्र,१.१५
स्मृति,१.३१२,१७