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(२४) हरिणी
३.४३; ५.६९; ८.५८; १०.४५; १३.२९; १५.४५; १७.६९.
(२५) मन्दाक्रान्ता
१३.४३; १४.३०.
अतिधृति जाति के छन्द(२६) शार्दूलविक्रीडित
७.९५; १४.३९; १८.१४५ - १४६.
(२७) अपरवक्त्र
१३.३७; १५.३४-४४; १७.६५-६६.
( २८ ) पुष्पिताग्रा
(२९) औपच्छन्दसिक
२.३४; ५.६७; १३.३८; १५.१-३३; १७.५८, ८३.
सन्धान - कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
(३०) वियोगिनी
(ख) अर्धसमवृत्त
१०.४१- ४२; १३.३१ (विषम चरण); १७.४९, ५४, ६१, ७९.
(३१) उद्गता
४.१-५४; ११.३९; १३.३१ (सम चरण); १७.४१-४२.
१७. १-३९.
(ग) विषमवृत्त
निष्कर्ष
इस प्रकार द्विसन्धान- महाकाव्य में सर्व लघु (नगण) सर्व गुरु (मगण) से युक्त छन्दों का प्रयोग कर धनञ्जय ने एक ओर तो वीर रस की उत्तेजना को उभारा है, तो दूसरी ओर भावुकता, युद्ध के परिणामस्वरूप शत्रु पक्ष की निराशा तथा