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द्विसन्धान-महाकाव्य का सन्धानात्मक शिल्प-विधान
त्रयोदश सर्ग
हनुमन्नारायणदूताभिगमनम्
रामकथा - हनुमान का रामदूत के रूप में लङ्का-गमन । लङ्का-वर्णन । रावण की राजसभा में हनुमान का रावण को राम की शरण में जाने का परामर्श । रावण का क्रोधित होकर हनुमान को फटकारना । हनुमान का लङ्का से लौटते हुए लङ्का के किनारे सुन्दर - वन में प्रवेश । सुन्दर-वन में हनुमान द्वारा सीता को राम-प्रदत्त अंगूठी देते हुए सांत्वना देना । तदनन्तर राम के समीप वापिस आना ।
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पाण्डवकथा - श्रीशैल का कृष्णदूत के रूप में जरासंध की राजधानी राजगृह पहुँचना । राजगृह-वर्णन । जरासंध की राजसभा में श्रीशैल द्वारा जरासंध को कृष्ण से समझौता करने के लिये कहना । जरासंध का क्रोधित होकर श्रीशैल को फटकारना । श्रीशैल द्वारा राजगृह से लौटते हुए राजगृह के किनारे सुन्दर-वन में प्रवेश । सुन्दर-वन में श्रीकृष्ण पर मुग्ध नायिका सुन्दरी को सांत्वना देकर श्रीशैल का कृष्ण के निकट वापिस लौटना ।
चतुर्दश सर्ग प्रयाणनिरूपणम्
रामकथा— राम, सुग्रीव आदि सहित समस्त सेना का शत्रु की ओर प्रयाण । सेना में रानियों तथा अन्य स्त्रियों के जाने का भी वर्णन । सेना का दक्षिण समुद्र के
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तट पर पहुँचना ।
पाण्डवकथा – श्रीकृष्ण, बलराम आदि सहित समस्त पाण्डव सेना का शत्रु की ओर प्रयाण । सेना में रानियों तथा अन्य स्त्रियों के जाने का भी वर्णन । सेना का गंगा-तट पर पहुँचना ।
पञ्चदश सर्ग कुसुमावचय-जलक्रीडाव्यावर्णनम्
रामकथा—-समुद्र-तट पर वन में सुग्रीव आदि द्वारा विश्रान्ति के लिये स्त्रियों द्वारा पुष्पावचय ।
नायक-नायिकाओं का
आमोद-प्रमोद | जल-क्रीडा-वर्णन |