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द्विसन्धान का महाकाव्यत्व
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द्विसन्धान- महाकाव्य में नायक, प्रतिनायक के अतिरिक्त गौण पात्रों का भी यथास्थान विवेचन हुआ है। भामह, दण्डी और रुद्रट आदि द्वारा संकेतित मन्त्री', दूत', सैनिक, सेनापति' आदि गौण पात्रों का इस महाकाव्य में विशद चित्रण यथोचित रूप से हुआ है । १५. रस- परिपाक
महाकाव्य के मूल तत्वों में रस का स्थान सर्वप्रमुख है। सभी काव्यशास्त्रियों ने महाकाव्य के प्रत्येक सर्ग मे रस- योजना की अनिवार्यता पर बल दिया है । ५ धनञ्जय ने इस काव्यशास्त्रीय परम्परा का अनुसरण करते हुए द्विसन्धान- महाकाव्य में सभी रसों को यथोचित रूप से निवेशित किया है । ६ १६. अलंकार - विन्यास
भामह ने 'सालंकार ७ तथा दण्डी ने 'सदलंकृति" पदों के माध्यम से अलंकार-योजना को भी महाकाव्य के प्रमुख लक्षणों में समुचित स्थान दिया है । द्विसन्धान-महाकाव्य में अधिकांश शब्दालंकारों तथा अर्थालंकारों का प्रयोग हुआ है । श्लिष्ट काव्य होने के कारण श्लेष तो आद्योपान्त प्रयुक्त हुआ ही है । चित्रकाव्य अथवा यमक के विभिन्न प्रयोग अष्टादश सर्ग में दृष्टिगोचर होते हैं । इस दृष्टि से तो द्विसन्धान- महाकाव्य अलंकार - प्रधान महाकाव्य है । १७. छन्द-योजना
महाकाव्य का छन्दोबद्ध होना भी आवश्यक है । छन्द-प्रयोग के सम्बन्ध में भामह और रुद्रट मौन साधे हुए हैं। दण्डी का इस सन्दर्भ में मत है कि महाकाव्य का छन्द श्रव्य और श्रुतिमधुर होना चाहिए और सर्गान्त में उसे बदल कर भिन्न
१.
द्विस, ११.१-२
२. वही, १३.१-३६
३. वही, १६.२१-२९
४.
वही, २.२२, १६.३०
५.
६.
का. भा.,१.२१, काव्या., १.१८, का. रु., १६.१५
विशेष द्रष्टव्य - प्रस्तुत ग्रन्थ, अध्याय ५
७.
का. भा.,१.१९
८.
काव्या.,१.१९
९. विशेष द्रष्टव्य - प्रस्तुत ग्रन्थ, अध्याय ६