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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना चित्रालङ्कारों का गुम्फन तो हो नहीं पाया है, किन्तु जिनका विन्यास इसमें हुआ है, वे इस प्रकार हैं(i) वर्ण चित्र
जहाँ स्वर बन्धन से मुक्त क, ख आदि व्यञ्जनों के नियमन द्वारा काव्यबन्ध किया जाता है, वह वर्ण चित्र कहलाता है। यह मुख्यत: चतुर्वर्ण, त्रिवर्ण, द्विवर्ण तथा एकवर्ण के भेद से चार प्रकार का होता है । द्विसन्धान में जिन वर्णचित्रों का विन्यास हुआ है, वे इस प्रकार हैं(क) चतुर्वर्णचित्र
ससास स स सांसासि, यं यं यो यो ययुं ययौ। नानन्नानन्ननोनौनी:, शशाशाशां शशौ शिशुः ॥२
प्रस्तुत पद्य स, य, न तथा श-इन चार वर्णों का प्रयोग होने के कारण चतुर्वर्णचित्र का उदाहरण है । प्रत्येक पाद में पृथक्-पृथक् वर्ण का प्रयोग होने से इसे एकाक्षर-पाद श्लोक भी कहा जा सकता है । द्विसन्धान में चतुर्वर्ण का भिन्न रूप से भी विन्यास हुआ है, जिसका उदाहरण इस प्रकार है
गरो गिरिगुरुगौरैररागैरुरगैररम्। मुमुचेऽमी चमूमुच्चाममाचाममुचोऽमुचन् ।
यहाँ ग, र, म तथा च वर्गों के योग से पद्यरचना हुई है, अत: चतुर्वर्ण है। पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध में पृथक्-पृथक् वर्ण होने से, इसे द्वयक्षर अर्धश्लोकी भी कहा जा सकता है । द्विसन्धान का पद्य १८. २८ भी चतुर्वर्णचित्र के लिये दर्शनीय है। (ख) द्विवर्णचित्र
वीरारिरवैरवारी वैववे रविरिवोर्वराम् ।
विवोवरैरविवरैरवोवावाविराववान् । १. यः स्वरस्थानवर्णानां नियमो दुष्करेष्वसौ ।
इष्टश्चतुःप्रभृत्येष दर्श्यते सुकर: परः॥ काव्या.३.८३ २. द्विस.१८.१९ ३. वही,१८.५४ ४. वही,१८.२७