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सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
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किया गया है कि रामायण के पात्रों के नाम महाभारत के पात्रों के विशेषण बन गये हैं एवं महाभारत के पात्रों के नाम रामायण के पात्रों के । उदाहरणतः रामायण की पात्र सुमित्रा का अर्थ महाभारत के सन्दर्भ में अच्छे मित्रों या बन्धु बान्धवों वाली हो जाएगा।' इसी प्रकार महाभारत का दुःशासन रामायण के सन्दर्भ में नियन्त्रण करने के लिये कठोर हो जाएगा । २ पात्रों की ही नहीं विशेष स्थानों की भी यही स्थिति है । यथा— रामायण की अयोध्या महाभारत के सन्दर्भ में परैर्योद्धुमशक्या अर्थात् शत्रुओं के आक्रमण से दूर अर्थ वाली हो जाएगी। इसी प्रकार महाभारतीय सन्दर्भ में प्रयुक्त जरासन्ध की राजधानी राजगृह रामायण पक्ष में राजमहल अर्थ वाली हो जाएगी।' विशेषण - विशेष्य भाव के वैशिष्ट्य से गुम्फित कुछ अन्य उल्लेखनीय अभिधान इस प्रकार हैं
I
अजातशत्रु (१.८),किरीटिन् (१.१७), पाण्डु (२.१), कौशल्या (२.३२), भीम (३.२८), लक्ष्मण तथा सहदेव (३.२९), शत्रुघ्न (३.३०) द्रोण (३.३५), धृतराष्ट्र (४. ३३), सीता (४. ३७), कीचक (५. ३), जरासन्ध (७. २१), दुर्योधन (७.२६), खर-दूषण (७. ६३), द्वारका (८. २५), विभीषण, कुम्भकर्ण तथा इन्द्रजित (८.५१) हृषिकेश (८. ५८), सुग्रीव (९. १४), तारा (९. २०), साहसगति (९. ४१), कल्याणी व सुभद्रा (९. ५२), गन्धमादन (१०. १७), श्रीराम व माधव (११.२९), भीष्म (११. ३५), श्रीशैल (१३.१),दशानन (१३.३०), श्रीपार्थ (१४.१),कृष्ण (१४.६), कुन्ती (१४.७), दुर्मर्षण (१६.१३), जयद्रथ (१६.१५), भूरिश्रवस् तथा कृतवर्मन् (१६.१६), उग्रसेन (१६.३७), द्रुपद (१६.३८), वैरोचन (१६.३९), अर्जुन (१७.२४) मारुत (१७.३६), भरत (१७.३७), विशल्या (१७.४०) तथा द्वारवती (१८.१३०) ।
(ग) उपमान- उपमेयता (उपमान- उपमेययोः)
इस सन्धान विधि की प्रक्रिया के अनुरूप द्विसन्धान- महाकाव्य में रामायण के पात्रों के नाम महाभारत के पात्रों के अनेक बार उपमान बन जाते हैं, फलतः रामायण के पात्रों के नाम उपमेय बन जाते हैं। इससे विपरीत यदि रामायण के नाम महाभारत के पात्रों के उपमान बनते हैं, तो रामायण के नाम उपमेय बन जाते हैं। इसको
१. द्विस., ३.२९
२ . वही, १६.१२
३.
वही, १.१०
४.
वही, १६.४