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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना रुद्रट के अनुसार महाकाव्य का कथानक उत्पाद्य (कविकल्पनाजन्य) भी हो सकता है। उनका यह भी कथन है कि 'यदि महाकाव्य का कथानक अनुत्पाद्य हो (अर्थात् इतिहास या पुराण से लिया गया हो), तो इतिहास-पुराणादि से केवल कथापञ्जर ही लेना चाहिए। शेष सभी बातें कवि को अपनी कल्पना से रक्त-मांस की भाँति उस कथापञ्जर में भरकर महाकाव्य के शरीर का सुगठित निर्माण करना चाहिए'२ रुद्रट का आशय यह है कि कथानक चाहे उत्पाद्य हो या अनुत्पाद्य, उसमें कल्पना का उपयोग कवि को अवश्य करना चाहिए। इस मत के अनुसार द्विसन्धान-महाकाव्य का कथानक अनुत्पाद्य है, उत्पाद्य नहीं, क्योंकि इसका कथानक इतिहास-पुराणादि (रामायण-महाभारत) से लिया गया है। इसका कथानक अनुत्पाद्य इसलिए भी है कि यह कथापंजर रूप में इतिहास-पुराणादि से भले ही लिया गया है, परन्तु धनञ्जय ने अपनी कल्पना से प्रसङ्गानुकूल अन्य बातें रक्त-मांस की भाँति उसमें समाहित कर उसे सुगठित शरीर प्रदान किया है। ४. कथानक-व्यवस्था
भामह प्रभृति काव्यशास्त्रियों द्वारा कथानक के विस्तार-संगठन तथा व्यवस्था के लिये महाकाव्य में भी नाट्य-सन्धियों की योजना का प्रतिपादन किया गया है। रुद्रट कृत काव्यालंकार पर टीका करते हुए नमिसाधु तो महाकाव्य में भरतोक्त पाँच नाट्य-सन्धियों का बड़े स्पष्ट रूप से विधान करते हैं। द्विसन्धान-महाकाव्य में (i) मुख, (ii) प्रतिमुख, (iii) गर्भ, (iv) विमर्श तथा (v) निर्वहण-इन पाँचों नाट्य-सन्धियों का औचित्य सिद्ध किया जा सकता है, जो इस प्रकार है
१. 'तत्रोत्पाद्या येषां शरीरमुत्पादयेत्कविः सकलम्।
कल्पितयुक्तोत्पत्तिं नायकमपि कुत्रचित्कुर्यात् ॥',का.रु.१६.३ २. 'पञ्जरमितिहासादिप्रसिद्धमखिलं तदेकदेशं वा।
परिपूरयेत् स्ववाचा यत्र कविस्ते त्वनुत्पाद्याः॥' वही,१६.४ ३. 'मन्त्रदूतप्रयाणाजिनायकाभ्युदयैश्च यत्।।
पञ्चभिः सन्धिभिर्युक्तं नातिव्याख्येयमृद्धिमत् ॥',का.भा.,१.२० 'सर्गाभिधानि चास्मिनवान्तरप्रकरणानि कुर्वीत।।
सन्धीनपि संश्लिष्टांस्तेषामन्योन्यसंबन्धात् ॥',वही,१६.१९ ४. 'तथा संधीन्मुखप्रतिमुखगर्भविमर्शनिर्वहणाख्यान्भरतोक्तान्सुश्लिष्टान्सु
रचनान्कुर्वीत् ।',वही, १६.१९ पर नमिसाधु कृत टिप्पणी,पृ.१६९