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द्विसन्धान का महाकाव्यत्व
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(ख) अविशद
अविशद वर्णन वाले वर्ण्य-विषय हैं- चन्द्रास्त', मरुभूमिरे, देश, सरोवर, सङ्गीत-गोष्ठी', विप्रलम्भ, आक्रमण और नागरिक-क्षोभ । (ग) नामोल्लेख
जिन वर्ण्य-विषयों का नामोल्लेख द्वारा वर्णन हुआ है, वे हैं-द्वीप, स्वर्ग(भुवन) १०, विवाह११ और स्कन्धावार-निवेश१२ । इस प्रकार सिद्ध है कि द्विसन्धान-महाकाव्य के वर्ण्य-विषय महाकाव्य-लक्षणों के अनुरूप हैं । ७. अतिप्राकृत और अलौकिक तत्व
रुद्रट ने महाकाव्य में अतिप्राकृत और अलौकिक तत्वों का होना आवश्यक माना है । किन्तु, उनका साथ-ही-साथ यह भी कहना है कि महाकाव्य में अलौकिक
और अतिप्राकृत कार्य मानव द्वारा सम्पादित नहीं दिखाये जाने चाहिएं । यदि ऐसा करना ही हो, तो वहाँ दिव्य शक्तियों-देवता, राक्षस, गन्धर्व, यक्ष, व्यन्तर आदि की सहायता लेनी चाहिए।१३ द्विसन्धान-महाकाव्य में देव१४, दैत्य'५, राक्षस१६, १. द्विस.,१७.८९-९० २. वही,१२.१५-१६ ३. वही,४.८ ४. वही,१.४७ ५. वही,१.४१ ६. वही,८.१९,३६,९१-९ ७. वही,सर्ग १४ ८. वही,१३.११ ९. वही,१२.५१ १०. वही,१०३८,१२.३३,१६.८३-८४ ११. वही,३.२६-२७ १२. वही,१४.२१ १३. का.रु.,१६.३७-३९ १४. द्विस.,४३२,६.५० १५. वही,५.६ १६. वही,७.६०