________________
महाकवि धनञ्जय :व्यक्तित्व एवं कृतित्व
६५ सुवर्णमय्यः शुचिरत्नपीठिका हरिन्मणीनां फलके: कृतस्थलाः । कलापिनां यत्र निवासयष्टय: स्फुरन्ति मायूरपताकिका इव ॥
यहाँ अयोध्या अथवा हस्तिनापुरी का वर्णन करते हुए मयूरों के बैठने के लिए बनाये गये स्वर्ण-दण्डों का चित्रण किया गया है। यह प्रसंग मेघदूतरे से तुलनीय है । इसके अतिरिक्त द्विसन्धान के पद्य १.२७ तथा १.२९ भी क्रमश: मेघदूत (पूर्वमेघ) के पद्य ४२ तथा ३४ से साम्य रखते हैं। अभिज्ञान-शाकुन्तल एवं द्विसन्धान-महाकाव्य
द्विसन्धान-महाकाव्य पर कालिदास कृत अभिज्ञान-शाकुन्तल का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है । सीता का अपहरण करने के लिये गए हुए रावण की उक्ति के अनुसार यदि वन में इस प्रकार का लोकोत्तर रूप हो सकता है, तो अन्त:पुर की क्या आवश्यकता है, यदि वनलता ही लोकोत्तर सुन्दर होती है, तो बाग में लता लगाने से क्या प्रयोजन है ? ३ सीता का यह सौन्दर्य-वर्णन दुष्यन्त द्वारा किये गये शकुन्तला के निम्न सौन्दर्य-वर्णन से साम्य रखता है
शुद्धान्तदुर्लभमिदं वपुराश्रमवासिनो यदि जनस्य।
दूरीकृता: खलु गुणैरुद्यानलता वनलताभि: ॥ किरातार्जुनीय तथा द्विसन्धान-महाकाव्य
धनञ्जय ने यद्यपि राजनीति के निरूपण में अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया है, तथापि राज्यव्यवस्था के चित्रण में भारवि कृत किरातार्जुनीय का उन पर प्रभाव स्पष्ट ही परिलक्षित हो जाता है । इस सन्दर्भ में द्विसन्धान का निम्न पद्य द्रष्टव्य
जिगाय षड्विधमरिमन्तराश्रयं यत: स्मयं त्यजति न षड्विधं बलम्। न यस्य यद्व्यसनमदीपि सप्तकं
स्थिराभवत् प्रकृतिषु सप्तसु स्थितिः ।। १. द्विस.१.२५ २. मेघदूत (उत्तरमेघ),१९ ३. द्विस.,७.८६ ४. अभिज्ञान-शाकुन्तल,१.१७ ५. द्विस.,२.११