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सन्धान-महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा
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गया तिसट्ठिमहापुरिसगुणालङ्कार, जो महापुराण भी कहा जाता है, इसी प्रकार का पौराणिक चरित-काव्य है। इसमें त्रिषष्टिशलाकापुरुषों का चरित वर्णित है, अत: जैन धर्म के अनुसार यह एक पुराण है । महाभारत में प्रधान या प्रासंगिक कथा एक होने से कुछ तो अन्विति है, किन्तु महापुराण में त्रेसठ पुरुषों का चरित होने से अन्विति नहीं है । डॉ. पी.एल. वैद्य का कहना है कि महापुराण में महाभारत और रामायण के समान अन्विति नहीं है, अतः यदि महाकाव्य की परिभाषा का कड़ाई से पालन किया जाये, तो महापुराण को महाकाव्य नहीं कहा जा सकता ।' डॉ. शम्भूनाथ सिंह कथान्विति न होने पर भी इसे महाकाव्य ही कहते हैं ।२ (ग) पौराणिक पुरुषों के वैयक्तिक जीवनचरित
अपभ्रंश में अनेक काव्य पौराणिक शैली में इस प्रकार के भी लिखे गये हैं, जिनमें किसी एक ही धार्मिक पुरुष का चरित वर्णित है । ऐसे काव्यों की विशेषता यह है कि उनमें किसी पौराणिक या धार्मिक व्यक्ति की जीवन-कथा जैन परम्परागत रीति से कही जाती है । कवि अपनी कल्पनाशक्ति से कथा के रूप में अधिक परिवर्तन नहीं कर सकता और विषय प्रतिपादन का उद्देश्य बोध - प्रधान, उपदेशात्मक या प्रचारात्मक होता है। आशय यह है कि ऐसे काव्य काव्यात्मक धर्मकथा होते हैं । कुछ उल्लेखनीय अपभ्रंश काव्य निम्नलिखित हैं
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(१) वीर कवि कृत जम्बूस्वामीचरिउ (२) विबुध श्रीधर कृत पासचरित, (३) पद्मकीर्ति कृत पासुपुराण, (४) हरिभद्र कृत णेमिणाहचरिउ (५) शुभकीर्ति कृत सान्तिणाहचरिउ (६) भट्टारक यश: कीर्ति कृत चन्दप्पहचरिउ (७) धनपाल कृत
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१. "The Mahapurana, therefore, is a work on the lives of sixty-three great men of the Jain faith, and thus as same place of importance the occupies the Mahabharata or the Ramayana in Hinduism. lacks of the unity Mahapurana, however, the Mahabharata, of the Ramayana and therefore cannot be called an epic in the strictest sense of the term.' Vaidya, P.L. : Introduction of the Mahapurana of Puspadanta, Vol.I, Bombay, 1937.
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२. डॉ. शम्भूनाथ सिंह: हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप-विकास, पृ. १८३