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सन्धान-महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा काव्य और इतिहास के बीच की है । जिस प्रकार पुराणों में प्राचीन भारतीय इतिहास अंशत: सुरक्षित है, उसी प्रकार ऐतिहासिक शैली के महाकाव्यों में भी इतिहास आंशिक रूप में ही उपलब्ध होता है।
ऐतिहासिक काव्य का पर्वरूप शिलालेखों की प्रशस्तियों में दिखायी देता है। सर्वप्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य अश्वघोष का बुद्धचरित है । समसामयिक राजाओं और व्यक्तियों को लेकर लिखा जाने वाला उपलब्ध सर्वप्रथम ग्रन्थ बाण का हर्षचरित है। आठवीं-नवीं शती से समसामयिक राजाओं के नाम पर प्रशस्ति-काव्य या चरित-काव्यों की रचना होने लगी थी। किन्तु समसामयिक व्यक्तियों के जीवन पर लिखे गये काव्यों में ऐतिहासिकता बहुत कम है, ऐसे काव्य या तो शास्त्रीय महाकाव्य के रूप में हैं या रोमांचक-कथात्मक महाकाव्य के रूप में अथवा ऐतिहासिक शैली के महाकाव्य के रूप में।
ऐतिहासिक शैली के महाकाव्यों में ऐतिहासिक घटना-क्रमावलम्बन, वंश-परम्परा-वर्णन और नायक के कार्यों का वर्णन भी छन्दोबद्ध रूप में यथातथ्य रीति से होता है । ऐसे काव्यों में काव्यात्मकता और कथा-प्रवाह कम होता है और महान् उद्देश्य तथा कार्यान्विति की भी कमी होती है। ऐतिहासिक शैली का महत्त्वपूर्ण महाकाव्य बिल्हण का विक्रमांकदेवचरित है, जो ग्यारहवीं शती के उत्तरार्द्ध में कवि के आश्रयदाता कल्याण के चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्ल (विक्रमादित्य षष्ठ) के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में लिखा गया है । बारहवीं शती में
and glorification takes the place of sober statements of facts, the laudatory accounts are generally composed by poets of modest power. The result is neither good poetry nor good history." Dasgupta and De : History of Sanskrit Literature, Calcutta, 1947, p.246. (b) "The importance of Charitas like Shriharshacarita and Vikramankadevacarita lies chiefly therein that however much a vitiated taste and a false conception of the duties of historiographer royal may lead their authors stray the main facts may be accepted as historical." Buhlar, George : Introduction to Vikramankadevacaritam, Bombay, 1915, p.3.