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सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
मेघचन्द्र की मृत्यु-तिथि बृहस्पतिवार, २ दिसम्बर, १९१५ ई. बताई गयी है । ' इससे प्रतीत होता है कि अभिनवपम्प की रामायण १११६ ई. या शक सं. १०३८ से पूर्व सुप्रसिद्ध थी और इस प्रकार सम्भावना यह होती है कि पम्प- रामायण ११०० • ई. के लगभग रची गयी होगी । निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि पम्प द्वारा निर्दिष्ट श्रुतकीर्ति त्रैविद्य के समय के अभिलेखों का काल शक सं. १०४५ और १०५८ है । वह शिलाहार राजा गण्डरादित्य (११०५-११४० ई.) का समकालीन था । शक सं. १०६५ (११४३ ई.) में कोल्हापुर बसदि के पुरोहित का पदभार उसके अनुयायी माणिक्यनन्दी पंडित ने संभाला था । अतः श्रुतकीर्ति त्रैविद्य ११२० से ११४० ई. तक कोल्हापुर बसदि का पुरोहित रहा होगा । निष्कर्षत: यह पम्प द्वारा निर्दिष्ट श्रुतकीर्ति से भिन्न था।
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(४) पम्प-रामायण से नागवर्म के भाषाभूषण में एक पद्य उद्धृत है । उक्त नागवर्म तथा काव्यावलोकन कर्णाटक - कादम्बरी (बाण की कृति का कन्नड़ रूपान्तर) व छन्दोम्बुधि का कर्ता, रक्कसगङ्ग (१०००-१०३० ई.) का विषय और धारा के प्रख्यात राजा भोजराज (१०१९-१०६० ई.) से उपहार स्वीकार करने वाला नागवर्म एक ही माने जाते हैं । जनार्दन या जन के अनन्तनाथ पुराण (१२२८ई. में पूर्ण) से पता चलता है कि यह नागवर्म राजा जगदेक अर्थात् चालुक्य राजा जगदेकमल्ल प्रथम (१०१५-१०४२ई.) की राज्यसभा में कटकोपाध्याय था । अत: इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि पम्प - रामायण और उसमें उद्धृत श्रुतकीर्ति का राघवपाण्डवीय १०४२ई. से पूर्व लिखे गये होंगे ।
(५) शक सं. १०४५ और १०६२ के मध्य अल्पकाल में एक ही शीर्षक से दिगम्बर सम्प्रदाय के दो जैन कवियों द्वारा दो संस्कृत के द्व्यर्थक काव्य नहीं लिखे जा सकते, यह तर्क भी युक्तिसङ्गत प्रतीत नहीं होता । और भी, धनञ्जय का राघवपाण्डवीय शक सं. १०४५ और १०६२ के मध्य नहीं, अपितु इससे बहुत पहले लिखा गया । पम्प द्वारा निर्दिष्ट राघवपाण्डवीय धनञ्जय विरचित द्विसन्धानकाव्य से भिन्न है । मैसूर के विख्यात पुरातत्त्ववेत्ता नरसिंहाचारियर ने नागवर्म के काव्यावलोकन की भूमिका में इस ओर संकेत करते हुए कहा है कि पम्प - रामायण
E.K., भाग२,नं.१२७,जैन शिलालेखसंग्रह, पृ. ६४
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२. E.I., भाग १९, पृ.३१
३. नरसिंहाचारियरः काव्यावलोकन की भूमिका, पृ. ४