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सन्धान महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा दिया गया। इस श्रेणी में मुख्यत: पाणिनि, अश्वघोष और कालिदास के महाकाव्य आते हैं।
यद्यपि पाणिनि का कोई काव्य अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाया है, तथापि सुभाषितसंग्रहकारों, अलंकारशास्त्रियों तथा कुछ टीकाकारों ने उनके काव्यों का उल्लेख किया है तथा उनसे यथाप्रसंग उद्धरण भी दिये हैं।
शास्त्रीय शैली के प्रथम उपलब्ध महाकाव्य बौद्ध-कवि अश्वघोष की रचनाएं हैं। अश्वघोष यद्यपि बौद्ध भिक्खु और महान् पण्डित थे, तथापि उनके महाकाव्यों—बुद्धचरित और सौन्दरनन्द में उनका कविरूप ही प्रधान है। सौन्दरनन्द में उनका धर्म-प्रचारक और दार्शनिक पक्ष अधिक प्रबल हो उठा है, फिर भी सर्वत्र सरसता तथा स्वाभाविकता बनी रहती है । बुद्धचरित में दार्शनिक स्थलों की पारिभाषिक शब्दावली ने विषय तथा अभिव्यंजना शैली में विचित्र वैषम्य उपस्थित कर दिया है, फिर भी उनकी शैली नैसर्गिक, सहज और संतुलित है । उनमें अलंकृति भी है, पर रामायण जैसी, परवर्ती महाकाव्यों जैसी नहीं । उनके महाकाव्य शान्तरस प्रधान हैं, किन्त भंगार और मारविजय के प्रसंग में वीर रस की व्यंजना भी की गयी है । मूलत: वैराग्य-पोषक दृष्टि को महत्त्व देने के बाद भी अश्वघोष के काव्य में शृंगार चेतना अछूती नहीं है।
कालिदास के महाकाव्यों में जीवन के दोनों पक्षों-राग और विराग, भोग और त्याग का संतुलित चित्रण हुआ है। इस चित्रण में कविता के कायिक तथा आत्मिक सौन्दर्य की निसर्गता में कोई कमी नहीं आने पायी है । उनके महाकाव्यों में जीवन के विविध स्वरूपों का सहज उद्घाटन हुआ है । यथा-कुमारसम्भव में वासनाजन्य प्रेम को उत्पन्न करने वाले सौन्दर्य की असफलता तथा दाम्पत्य जीवन में तप:पूत निश्छल प्रेम की आवश्यकता का सहज चित्रण हुआ है । इतना होते हुए भी उनके महाकाव्यों में अन्विति है, घटना प्रवाह है, अवान्तर-कथाओं की कमी है और नाटकीय विकास-क्रम है । ऐसा कलात्मक वैभव रघुवंश मे दृष्टिगोचर होता है। इतने विशाल काल-खण्ड लेकर उन्होंने दिलीप से अग्निवर्ण तक के जीवन की घटनाओं के जो चित्र खींचे हैं, उनसे नाटक के दृश्यों के समान पाठक-मन आनन्दपरित हो जाता है । इसकी वर्ण्य-वस्तु तथा अभिव्यंजना शैली में जो सुखद सन्तुलन है, कथानक में जो अबाध प्रवाह है, भाषा में जो परिष्कार तथा संयम है, १. द्रष्टव्य-बलदेव उपाध्याय: संस्कृत साहित्य का इतिहास,पृ.१५०