________________
सन्धान-महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा
भारतीय महाकाव्य के सन्दर्भ में ऋग्वैदिक संवाद-सूक्तों के आधार पर ही सम्भवत: ओल्डनबर्ग ने यह अनुमान किया है कि भारतवर्ष में महाकाव्य का प्राचीनतम रूप गद्य-पद्य मिश्रित था, जिसमें पात्रों के संवाद तो पद्य में होते थे, किन्तु उन संवादों से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन गद्य में किया जाता था। प्रारम्भ में केवल पद्यों को याद रखा जाता था, घटनाओं से सम्बन्धित वर्णनों को लोग अपने ढंग से कहते थे। मैक्समूलर , सिल्वालेवी, हर्टेल आदि के अनुसार ये संवाद-सूक्त एक प्रकार के नाटक थे। विन्टरनित्ज़ का कथन है कि ऋग्वेद के संवाद-सूक्तों जैसी कविताएं भारतीय साहित्य-महाभारत, पुराण, बौद्ध साहित्य आदि में बहुत अधिक मिलती हैं। अतएव ये संवाद-सूक्त प्राचीन गाथाएं हैं और इन्हीं के संवादतत्त्वों से 'नाटक' तथा आख्यानक तत्त्वों से 'महाकाव्य' का विकास हुआ है।
__महाकाव्य के विकास में सामन्त-युग का विशेष योगदान रहा है । आदिम युग में कबीले ही समाज थे, अत: समाज-व्यवस्था में सामूहिकता की प्रवृत्ति प्रमुख थी। इसी सामूहिक प्रवृत्ति के कारण सामूहिक नृत्य-संगीत आदि उनकी धार्मिक तथा सामाजिक अभिव्यक्ति के माध्यम रहे। कालान्तर में मानव-समाज को कृषि-व्यवस्था, पशुपालन, व्यापार आदि का आश्रय लेना पड़ा। अभिप्राय यह है कि मानव-समाज ने सामन्त-युग में प्रवेश किया। इस सामन्त-युग के विकास की तीन अवस्थाएं मानी गयी हैं—(१) प्रारम्भिक सामन्त-युग, (२) मध्य सामन्त-युग तथा (३) उत्तर सामन्त-युग। महाकाव्य की सामग्री सामन्त युग के प्रथम काल में निर्मित हुई और द्वितीय काल में विकसित होकर वह महाकाव्यों के रूप में परिवर्तित होने लगी। इस द्वितीय काल का अन्त होते-होते अलंकृत महाकाव्यों की रचना होने लगी, जो तृतीय काल के महाकाव्यों में अपने उत्कृष्ट रूप में परिणत हुई। सामन्त युग में ही अनेक आन्तरिक और बाह्य प्रभावों के कारण प्राकृत, अपभ्रंश
१. Z.D.M.G. Vol. XXXVII (1883), p.54ff and Vol. 39.
(1885), p.52ff २. Winternitz : A History of Indian Literature, Vol. I,
Calcutta, 1927, p.102. .. ३. वही, पृ.१०२-१०३ ४. केशवराव मुसलगांवकर : संस्कृत महाकाव्य की परम्परा, पृ.९३