Book Title: Chatushatak Part 02
Author(s): Vidhushekhar Bhattacharya
Publisher: Visva Bharti Book Shop

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Page 29
________________ CATUHSATAKA [179 रासलके परिकल्पितसर्पवत् स्वरूपासिहिरवसीयते। यस्तु स्वरूपसिहं रागादौनामभ्युपैति नियतं तेन कल्पनापेक्ष्यजन्मत्वं स्वरूपसिरिविरई नाभ्युपेतव्यम् / यदि यसो भूतोऽर्थः किमर्थं तदर्थं कल्पनापेक्ष्यते। कथमसौ भूतार्थः / इत्येवं सोपपत्तिकागमभासावभासितचित्तसन्तानत्वान् न विहांसः खरूपसिहस्य कल्पनाजनितत्वमङ्गोकुर्वन्ति। जड़ास्तु कथचिद् विपवासात प्रवर्तन्ते // 3 // 179 CSV : प्रवाह। विद्यत एव रागादीनां स्वभावो बन्धनत्वात् / तथा हिं। सो पुरुषविषयेण रागेण पुरुषेण सह बड़ा नातिकामति पुरुषम् / पुरुषच स्त्रीविषयेण रागेण स्त्रिया सह बड़ो न परित्यजति स्त्रियमिति / उचते hgah lahan gan dan lhan cig' tu | bciis pa zes bya yod min te | gz'an dan lhan cig bcins pa la ___bral ba rigs pa ma yin no || 3 // In a for tu V has wrongly du. In d V with Vx of CS bar for ba. * कस्यचित् केनचित् साधं बन्धो नाम न विद्यते / परेण सह बन्धस्य विप्रयोगो न युज्यते // 4 // In 6 V wrongly reads yujyate for vidy ite and in c for bandhasya he accepts the misprint, baddhasya, in the fragments (HPS, p. 474). That the reading must. be bandhasya is quite evident and is supported by the Vstti. ____CSV : यथैव हि रागः कल्पनापेक्ष्यजन्मत्वात् स्वभावासिहस्तहत् स्त्रीपुरुषयोरपि वरूपासिहत्वात् कस्यचिदर्थस्य केनचिदर्थेन सह नास्ति स्वरूपतो बन्ध इति न बन्धकारणत्वादु रागः खरूपतः सिध्यति। पथावप्यवधूयेत्यं विचार परेण सह परस्य बन्धः परि कल्पाते एवमपि परेण सह बन्धस्य विप्रयोगो न युज्यते / 1 Tib. om. pari.. 2 Tib. oni. iti. * Tib. mi mnah la; it does not literally mean atikramati. rib. om. pari.. * In xde ltar (evam, tatha). According to skt. it must be read ji ltar (yatha).. . Tib. om. pari-,

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