Book Title: Chatushatak Part 02
Author(s): Vidhushekhar Bhattacharya
Publisher: Visva Bharti Book Shop

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Page 230
________________ 205 331] CHAPTER XIV प्रति सिहान्सविरोधोद्भावनमकिञ्चित्करं सिद्धान्तनिराकरणप्रवृत्तत्त्वात्तस्य / मुक्तिलोकविरोधोद्भावनं तु तं प्रति ज्यायस्तद्वारण तस्य निवर्तयितु शक्यत्वात् / तस्मादपरिहार एवायं यदिदमागमविरोधोद्भावनमिति स एवाविचलो दोष इति नास्ति भावघटयोरन्यत्वम्। तदव सत्तान्यत्वप्रतिषेधेनान्येषामपि घटत्वादीनां सामान्यविशेषाणां प्रतिषेधो विन्न यः संख्यावसामान्यगुणानां महत्ववविशेषगुणाना मिति // 5 // 331 CSV: अत्राह। उक्तो भावस्य घटा दिभ्योऽन्यत्वप्रतिषेधः। घटस्य तु स्वभावाप्रतिषेधादस्येव स्वरूपतो घटाख्यो भाव इति। अत्रो'च्यते mtshan nid kyis kyan mtshan gzi ni gan du grub pa yod min pa der ni grans sogs tha dad par dios po yod pa ma yin no || 6 || * लक्षणेनापि लक्ष्यस्य यत्र सिद्धिर्न विद्यते। ___ संख्यादिव्य तिरेकेण तत्र भावी न विद्यते // 6 // CSV: इह घटसत्त्वयोर्व्यावृत्त्यनुवृत्तिलक्षण अवता घटस्य व्यावृत्ति लक्षणं व्यवस्थापितं परण। तदमुना लक्षणेनापि लक्ष्यस्य नास्ति सिद्धिः। न हि व्यावृत्तिमात्रेण शक्यं वस्तुस्वरूपं निधारयितुं यलच्यतया सेत्स्यति / एकस्तावगुणत्वाहटो न भवति। अणुम हदिति रूपादयश्च गुणत्वादेव घटाख्यान भवन्ति। सत्तापि द्रव्यगुणकर्मसु सामान्याहटो न भवति / तदयं संख्याणमहद्रूपादिभ्यो व्यावर्तमान इत्यं स्वभाव इति न शक्यं व्यवस्थापयितुम् / तदेवं यत्र परवादिपक्षे लक्षणेनापि लक्ष्य स्थ घटस्वरूपस्य नास्ति सिद्धिस्तत्र पक्षे संख्यादिव्यतिरेकेण सिद्दस्वरूपण घटाख्यो भावो न विद्यते / ततश्च स्वभावशून्यो घट इति सिचम्। अथ वा संख्यादयो घटस्य लक्षणम्। तैलक्ष्यमाणत्वावटो लक्ष्यः / तस्य लक्षणेनापि पृथक स्वरूपसिद्धि रशक संख्यादिव्यतिरेकेण 1 For -pravrttatvat Tib. -cittatvat (thugs pahi phyir). * Tib. bye brag gi yon tan rnams: HPS visesanam. * Tib. bum padeg : HPS patadeg. Tib. om. atra. 5 Tib. ad. tat- (de). * Tib. degkarmanam (deglas rnams kyi). . Tib. om. siddha-. . Tib.ekadha (rnam pageig tu). * Tib.om. it. 10 Tib. -gusiddhi, reading legs (X logs) su grub. 11 Tib. nusti (yod pa ma yin te) for a sakyao.

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