Book Title: Chatushatak Part 02
Author(s): Vidhushekhar Bhattacharya
Publisher: Visva Bharti Book Shop

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Page 231
________________ 206 CATUHSATAKA [333 तत्स्वरूपस्यानुपलभ्यमानत्वात्। यदि हि तल्लक्ष्य स्वरूपं लभते तदा नियत संख्यादिव्यतिरेकेण ग्राह्यतेदं तसंख्यादि व्यतिरिक्त घटस्वरूप मिदं पुनरस्य संस्थादिक लक्षणमिति। न चैतदेवमित्यतो लक्षणेनापि लक्ष्यस्य यत्र सिदिन विद्यते। __ संख्यादिव्यतिरेकेण तत्र भावो न विद्यते // इति नास्ति स्वभावतो घटः॥६॥ 332 - CSV: उक्तस्तावलक्ष्यलक्षणयोरन्यत्वप्रतिषेधः। येषां तु रूपादिभिर्घटस्यैक्यमिति सिद्धान्तस्तप्रतिषेधायेदमुच्यते-। mtshan nid rams dan so so ni min phyir bum pa gcig ma yin ' re reni bum pa med na ni man iiid hthad par mi hgyur ro || 7 || * घटस्य न भवेदैक्यमपृथत्वादि लक्षणैः / / एकैकस्मिन् घटाभावे बहुत्वं नोपपद्यते // 7 // CSV : रूपादीनि खलु नानालक्षणानि येषां तैरपृथक्वं• घटस्येष्टम् / तेषां रूपादिभिलक्षणैरपृथक्वाद घटस्यै क्यं नोपपद्यते। बहुभिरनन्यत्वात् / स्यात्तत्र मतम् / यदि घटस्यै क्य न भवति हन्त बहुत्वं प्राप्तमिति। अत्रोच्यते। यस्माद्रूपादिष्केकैकस्मिन् घटस्थाभावो दृष्टस्तस्माइहुत्वमपि नास्तीति // 7 // 333 . CSV : प्रवाह। यदि रूपादिभिलक्षणैरपृथक्लाइटस्यैक्यं नास्ति तेषां परस्परसंयोगाहटस्यै क्यं भविष्यतीति अत्रोच्यते / reg ldan reg dan mi ldan dan | Ihan cig sbyor ba z'es bya med desi phyir gzugs sogs rnams sbyor ba | rnam pa kun tu rigs mi yin |J8 || 1 Tib. la sogs: HPS om. adi.. . For ghataavaripam Tib. svarupepa (rangi ho bos). * Tib. Bamkhyadi vyatiriktam (grans la soge pa las tha dad par). Tib. B0 80 ma yin pa nid du; HPS prthaktvam. Tib. ad. dar bane. . Tib. do 80 ma yin pahi phyir ; HPS aprthaktvam.

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