________________ 261] .. CHAPTER XI 103 bz'in las nes par mi nus pahi phyir ran gi no bos rnam par bz'ag par mi nus kyi de dag gi bsnad par bya bahi dnos poui khyad par bum pa la sogs pahi sgo nas ni rnam par bz'ag par nus so ll de dag ni dnos po las tha dad pahi ran bz'in yin z'in tshor ba la sogs pa Itar nams su myon bahi rnam pa ma yin la gzugs dan sgra la sogs pa bz'in dban pohi sgo nas yons su gcod par bya ba yan ma yin no || deni phyir bum pa la sogs pahi sgo kho na nas de dag gi khyad par yons su gcod pahi phyir deni sgo nas dus gsum bkag pas dus dgag par mdzad par bz'ed pas bsad pa = प्रवाह कालवादी। रूपादीनामन्यस्मादुद्भवदर्शनालोकस्याप्रत्यक्षत्वात्कस्यचित्सत्यस्य * फलस्यादर्शनेनानुमानागम्यत्वाच्च मास्त्यात्मेति यदुना न [ तेन ] सर्वथा नित्यानां भावानामभावः। कालसद्भावात् / इह क्षितिसलिलज्वलनपवनाकाशबीजादिसद्भावेऽपि कदाचित्कुसुमागुरादीनामुत्पादभङ्गयोरभावादथ कदाचिद्भावात्कालो नाम तत्फलदर्शनान्मानम्। स च क्षणपलमुहतीदिव्यञ्जनीयोऽतीतोऽनागतोः प्रत्युत्पन्नश्च कालत्रयव्यवस्थिताद्वावाशिबो नित्य इति। पत्रोच्यते। यदि कालो नाम भावाशिनो ज्ञानसिद्धो भवगवत्स उत्पादभङ्गहेतुः। न वेवमस्ति। भावाशिवत्वेन ग्रहणप्रसङ्गात्। यस्मिन्भावे प्रवृत्तिश्च निवृत्तिचोपलभ्यते। अन्यायत्तो भवत्येष कार्यस्तेन च जायते // इत्यादिना (207 = IX. 7) प्रतिषिष्ठत्वादपि स्खलक्षणसिद्धस्य कालस्य न प्रवृत्तिनिवृत्ति हेतुत्वम् / / अन्य। ये त्रयः कालाः कालस्य स्वभावविशेषणावस्थितास्तेऽप्यमूत्तवेन खरूपेण निणेतुमशक्यत्वाब शक्यन्ते खभावन व्यवस्थापयितुम् / तेषामाख्यातव्यस्य भावस्य विशेषो घटादिहारा शक्यो व्यवस्थापयितुम् / ते त भावभिनखरूपा वेदनादिवदनुभवाकारा न रूपशब्दादिवदिन्द्रियहाग परिच्छेत्तव्याः। तस्माइटादिहारैव तेषां विशेषः परिच्छिद्यत इति तद्वारा कालत्रयनिषेधन कालप्रतिषेधं कर्तुकाम पाह-। ma hons bum la da Itar bahi | bum yod ma yin hdas pa med /