Book Title: Chatushatak Part 02
Author(s): Vidhushekhar Bhattacharya
Publisher: Visva Bharti Book Shop

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Page 164
________________ 277] CHAPTER XII 139 tan gyi no bor ram par hgyur gyi || bsad zin pahi mtshan nid can gyi nan pa po thos pa las byun ba la sogs pahi yon tan phyin ci ma log pahi tshogs kyi gz'ir gyur pa yod na ni smra ba po la yon tan rnam pa gz'an du mi hgyur la nan pa po la yon tan skyon gyi no bor mi hgyur ro || CSV: blun po bdag la bstan' pa na ci bdag cag la ses rab med dam ci z'ig bya | riogs par byed pa po med de' z'es de skad du gan smra ba po ma yin no || hdi ni lrag pahi bsam pa bskul bahi mdo las rtogse par byaho.|| _ तत्र शङ्गुष्ठः यः पक्षेऽपतितः। कः पुनः पक्षेऽपतितः / यः स्वपक्षे परपक्षे चानुरागण प्रतिधेन च पक्षरहितः। स ह्येव चित्तसन्तानाले शात्सुभाषितरत्नविशेषयुतितत्परो भवतीति संक्ल पक्षक्षेपमूले शङ्की तिष्ठति। तस्मादेव सति शङ्गुष्ठः श्रोतोत्तमस्य सद्धर्मामृतस्य भाजनम् / शङ्गुष्ठभूतोऽपि यदि प्राज्ञः स्वात् स्यात्सुभाषितदुर्भाषितसारासारविचारपटुः। स हि प्राज्ञत्वेनासार त्यक्ता सार' रजाति। श्रोता देवं प्राचो भवेत्स भाजनं भवेत्। एव' शङ्गुष्ठः प्राचभूतथ सुभाषितषणार्थी संश्चित्र पुरुष इव न वीर्यहीनो भवति। एव शङ्गुष्ठो बुद्धिमानर्थी श्रीता पात्रमितीर्यते / बोटषु च तादृशेषु नून अन्यथा न गुणो वक्तनं श्रोतुरपि जायते // तब वतागुणा अपक्षपातित्वमवैपरीत्यं स्पष्टत्वमकोपवक्त व श्रोत्रध्याभयावगन्तत्वं निरामिषचित्तत्वञ्चेत्येवमादयः। श्रोतुरपि धर्म धर्मवादिमि . योः श्रधा मनोनिवेशः शङ्गुष्ठत्वं बुद्धिमत्त्वमर्थित्वं च। तस्वार्थि त्वं च धसे धर्मवादिनि च श्रद्देया मनोनिवेशादिना च प्रतीयते। एवं च सति वक्तगणो नान्यथा जायते / श्रोतुरपि गुणो नान्यथा जायते / बोपरि हि तादृशे वक्त गुणो दोषरूपो न भवति। श्रोतुर्दोषाहुणोऽपि दोषरूपेण विक्रियते दोषोऽपि च गुणरूपेण विक्रियते। उक्तलक्षणस्तु श्रोता अवसाधुताविपरीतगुणगणानामाधारो भवति। वक्तगणो नान्यथा जायते / नच बोतर्गुणो दोषरूपो भवति / नास्त्यस्माक जड़ात्मनां देशनायां कापि प्रज्ञा किमपि कर्तव्यं वा। नास्ति प्रतिपत्तेत्येवं न कोऽपि वक्ता। प्रत्येतव्यमेतद् अभि प्रा यो प दे श सूत्रे // 1 // 1 X botod (prata msa). .x rtog.

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