________________ 282) CHAPTER XII 146 281 CSv: न च तथागतवत्तोथिकानामपि शक्ष्यमविपरीतार्था भिधायिखमवसातं तेषां दृष्टधर्म एव विपर्यस्तत्वात्। तथा ह्यस्य लोकस्य तैनित्यकारणपूर्विका प्रवृत्तिरुपदिश्यते। सा चाशक्यप्रतिपादना दृष्टविरुष्पा चोपपत्तिविरुद्धा च। एवम्-। gan gis hjig rten hdi mthon dkah 1 de ni gz'an la blun pa nid | gan dag de rjes hgro de dag! sin tu yun rin bslus par hgyur || 6 || In b V wrongly ba for pa. _ * लोकोऽयं येन दुर्दष्टो मूढ़ एव परत्र सः। वञ्चितास्ते भविष्यन्ति सुचिर येऽनुयान्ति तम् // 4 // CSV: न हि सम्पूर्णे चन्द्रमसि व्याहतदर्शनसामर्थ्यो 'ध्रुवमरुन्धती वा पश्यतीति सम्भाव्यम् / तद्ददय तीर्थ को लोकस्य सत्त्वभाजनाख्यस्य हेतुफलव्यामूढ़त्वात् स्थूलमेवार्थ तावद्यदा न सम्यगोचते तदा कथमयमतिसूक्ष्म विदूरदेशकालव्यवहितं सप्रभेदमर्थं जास्यतीति' सम्भावयितुं शक्यम्। तदिम तौर्थिक खयमत्यन्तविपर्यासितदर्शन' मृगतृष्णाजलवदनुपासनीय तत्त्वदर्शनामलजलपिपासवः संसाराध्वपरिश्रमलमापनोदनाय वञ्चितास्ते भविष्यन्ति सुचिरं येऽनुयान्ति तम् // अपर्यवसानापरकोटिके संसारे ते वत वञ्चिता भविष्यन्ति ये यथार्थ• शास्तारं बुद्ध भगवन्तमवधूय' दृष्टादृष्टपदार्थस्वभावश्थामूढं मोक्षकामतया तौर्थिकमनुगच्छन्ति // 6 // 282 ___CSV: कस्मात्यनरते मोक्षकामा विपर्यस्तदर्शन तोर्थिकमनुगच्छन्ति / खभावशून्यताधर्मोपदेशश्रवणभयात् / तद्भय 1 Tib. om. artha-. . Tib. bstan par mi nus 80, and thus does not support degpratipadya of HPS. * Tib. lit. parnima- (na ba). 4 Tib. ad. kascid (bgah z'ig gis). 5 Tib. om. iti sambhavyam. * Tib. om. vi.. 7 Tib. om. iti sam. B For this Tib. phyi mahi mur (1) gtugs pa med pa can. Should we read mthah tor mur? Forvathartha avadhuya Tib. budhena bhagavata yathavad upadistam artham anupasya (gang rgyas bcom Idanhda 3 kyis donji Itaba bz'inston pa lami beten par). io HPS ad. [sta-] mevam which is not supported by Tib. 19