Book Title: Chatushatak Part 02
Author(s): Vidhushekhar Bhattacharya
Publisher: Visva Bharti Book Shop

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Page 225
________________ 200 CATUHSATAKA [327 मुपलभ्यमानस्वरूपाः स्युः। न चैते विचाराग्निसंतापिता विपर्यास निबन्धनत्वात् स्वरूपाभावं नासादायन्ति / न हि वस्तूपपत्तिरहितं. युज्यते। सर्वथा तस्य विसंवादकत्वात् / अत एवाचार्यो वस्तुभिनिवेशशिथिलीकरणायातः पर यथा च घटादीनां स्वरूप न सम्भवति तथोपपत्तिमाह-। gzugs nid bum z'es gcig ma yin | gzugs ldan bum gz'an yod min pa ! bum pa la gzugs yod min z'in gzugs la bum pa yod ma yin || 2 || * रूपमेव घटो नैक्यं घटो नान्योऽस्ति रूपवान् / न विद्यते घटे रूपं न रूपे विद्यते घटः // 2 // CSV : इह यदि घटो नाम कश्चित्यदार्थः स्यात्स दर्शनेन्द्रियग्राह्यत्वाद्रूपा देन वा परिकल्पितोऽभेदेन' वा। तत्र तावद रूपमेव घटो नैक्यम् / न यदेव रूपं स एव घट इति रूपघटयोरैक्यं न भवति / यदि हि रूपघटयोरेक्यं स्यात्तदा यत्र यत्र रूपं तत्र तत्र [ घट इ ] ति सवत्रैव रूपे घटः स्यात्। पाकजगुणोत्पत्तौ रूपविनाशे घटविनाशः स्यात्। न चैतत् सम्भवतीति रूपमेव घट इति नास्त्ये कत्वम्। अथैतदोषपरिजिहोर्षया रूपादन्यो घटो रूपवान् परिकल्पेत तद्यथार्थान्तरभूतैर्गोमिर्गोमान् देवदत्त इति / एतदप्ययुक्तम्। यस्माद घटो नान्योऽस्ति रूपवान्। . यदि रूपादन्यो घट: स्यात्स1 रूपनिरपेक्षो रह्येत। न हि गोभ्यो व्यतिरितो देवदत्तो गोव्यतिरेकेण न ग्राह्यते। तहबटोऽपि रूपनिरपेक्षो गृह्येत। न च ग्राह्यत इत्यतो रूपश्यतिरिक्तो घटो नास्ति / यदा च नास्ति कथमविद्यमान स्तहत्तया ग्राह्यते। न ह्यविद्यमानो वधातनयो गोमानिति 1 Tib. ad. -matra- (tsam) after viparyasa-. . Tib. dhos po ni hthad pa dan bral ba ma yin te | HPS deg vastdpapattyapi. 3 Tib. om. it. * Tib. avisamvadaktvat (mi bslu ba iiid yin pahi phyir). s In x read chad for ched. * In x read de for da. * In X add tha between mi and dad. * Tib. sambhavati (srid). * HPS3; and it is supported by Tib. (bum paho zes). 10 Tib. tatha hi (hdi ltar). 11 Tib.de; HPS svarupa'. 1. In x read bltos or ltos for rtog. 11 Tib. yod pa ma yin pa ; HPS asamvidyamanao.

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