Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[शकारादि .
आता दार मभिष्टां रास्नां पिष्ट्वा विपाचयेत्।। यह तैल वातरक्त और वातव्याधि नाशक बस्तिपानादिभिर्युक्तमेतन्मारुतरोगनुत् ॥ तथा रसायन, इन्द्रियाँको निर्मल करने वाला,
२ सेर तेलमें २ सेर दूध और २०० सेर | जीवनशक्ति-वर्द्धक, वृंहण, स्वरके लिये हितकारी प्रसारिणीका काथ तथा निम्न लिखित कल्क मि- एवं शुक्र दोष और रक्तविकार नाशक है । लाकर पकार्थे । जब पानी जल जाय तो तेलको (७३९९) शतपाकमधुपर्णीतैलम् छान लें।
। (च. सं. । चि. अ. २९ ; भा. प्र. म. ख. .. कल्क-जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा,
- २ । वातरक्ता. ; व. से. । राजय.) काकोली, क्षीरकाकोली, कूठ, सफेद चन्दन, सोया, देवदारु, मजीठ और रास्ना, समान भाग मिश्रित
मधुपर्यापलं पिष्ट्वा तैलमस्थं चतुर्गुणे। २० तोले ले कर सबको पानीके साथ पीस लें।
क्षीरे साध्यं शतकृत्वस्तदेव मधुकाच्छृतैः ॥
सिद्धं देयं त्रिदोषे स्याद्वातास्त्रश्वासकासनुत् । इस तेलकी बस्ति लेने, इसे पीने और
हृत्पाण्डुरोग वीसर्पकामलादाहनाशनम् ॥ इसकी मालिश आदि करनेसे वातज रोग नष्ट
५ तोले मधुपर्णी (गिलोय) के कल्क और
८ सेर दूधके साथ २ सेर तेल पका कर छान लें (७३९८) शतपाकबलातैलम् और फिर उसे पुनः इन्हीं चीजोंके साथ पकावे । (सहस्रपाकबलातैलम् )
इसी प्रकार १०० बार पाक करें। (च.सं.। चि. अ. २९ ; भा. प्र. म. खं. २॥ वातरक्ता. ; व. से. । वातरक्ता.)
तदनन्तर उसमें मुलैठीका ८ सेर काथ
मिलाकर पकावें। पलाकपापकरकाभ्यां तैलं क्षीरसमं तथा ।
यह तेल त्रिदोषज वातरक्त, श्वास, कास, सहसवत्ता वा वातासुरवातरोगनुत् ।।। रसायन श्रेष्ठतममिन्द्रियाणां प्रसादनम् ।
| हृदोग, पाण्डु, वीसपै, कामला और दाहको नष्ट जीवन दहणं स्वयं शुक्रामग्दोषनाशनम् ॥
पला (खरैटी) के कल्फ और क्वाथके साथ (७४००) शतावरीतैलम् तैल सिद्ध करके छान लें।
(शा. सं. । खं. २ अ. ९ ; वृ. नि. र. । वातव्य.) इसी तेलको पुनः खरैटीके काथ और कल्कके
शतावरी बलायुग्मं पण्यौं गन्धर्वहस्तकः । साथ सिह करें।
अश्वगन्धाश्चदंष्ट्रा च पिश्यः काशः कुरण्टकः ।। इसी प्रकार सहस्र बार या १०० बार पाक करें।
१ मधुयष्टयाः इति पाठान्तरम् ।
| करता है।
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