Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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४४२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[हकारादि (८४५८) हरीतक्यादिकल्कः (२) ! (८४६१) हरीतक्यादिचूर्णम् (३) (यो. र. । बाला. ; वा. भ. । उ. अ. २;
(यो. र. । कृम्य.) . मा. । बाला.) - हरीतकी चैव तथा हरिद्रा हरीतकीवचाकुष्ठकल्कं माक्षिकसंयुतम् । ! सौवचलं चैव समं विचूर्णितम् । पीत्वा कुमारः स्तन्येन मुच्यते तालुकण्टकात्॥ इन्द्रवारुणिजलेन भावितं
हर, चव और कूठ समान भाग लेकर पत्थर कीटसङ्गविनिवारणं परम् ॥ पर पानी के साथ पीस लें और शहद में मिला लें।
___ हर्र, हल्दी और संचल ( काला नमक ) ___इसे बच्चेकी माके दूधमें घोलकर उसे पिला- !
कर उसे पिला- ! समान भाग ले कर चूर्ण बनावें और उसे इन्द्रायण नेसे तालुकण्टकरोग नष्ट होता है।
के स्वरसमें खरल करके सुखा लें। (मात्रा-३-४ रत्ती ।)
___यह चूर्ण कृमियों को नष्ट करता है । (८४५९) हरीतक्यादिचूर्णम् (१) . (मात्रा-३ माशा ।)
( भा. प्र. म. खं. २ । अम्लपित्ता.) (८४६२) हरीतक्यादिचूर्णम् (४) अभया पिप्पली द्राक्षा सिता धान्ययवासकम् ।
a (ग, नि. । छर्य. १४ ; वृ. नि. र. । बाला. : मधुना कण्ठदाहघ्नं पित्तश्लेष्महरं परम् ॥
। वृ. नि. र.। छZ. ; यो. र. । छर्य. ; वृ. मा. ;
वृ. यो. त. । त. ८३ : व. से. छई.) हर, पीपल, मुनक्का, मिश्री, धनिया और .
र हरीतक्याः कृतं चूर्ण मधुना सह लेदयेत् । जवासा समान भाग लेकर चूर्ण बनावें।
__अधस्ताद्विहिते दोषे शीघ्र छर्दिः प्रशाम्यति ॥ इसे शहदके साथ सेवन करनेसे कण्ठकी दाह ।
हर के चूर्णको शहद में मिलाकर सेवन करने तथा पित्त और कफका नाश होता है ।
। से अधोगत दोप नष्ट होते और छर्दि शान्त हो (मात्रा-~-१॥-२ माशा ।)
जाती है । (८४६०) हरीतक्यादिचूर्णम् (२) ।
( यह योग पित्तज छर्दि में उपयोगी है।) (यो. र. ; वृ. नि. र. । जीर्णचरा.)
(मात्रा-थोड़ी थोड़ी देग्में १ .-१ माशा हरीतकी निम्बपत्रं नागरं सैन्धवोनलः। चटावें ।) एषां चूर्ण सदा खादेद् दुर्जलज्वरशान्तये ।। (८४६३) हरीतक्यादिचूर्णम् (५)
हर, नीमके पत्ते, सोंठ, सेंधा नमक और (वृ. नि. र. । आमातिसारा. : शूला. : यो. र. : चीता समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।। व. से. । आमाति.; शा. ध. । खं. २ श. ६)
इसके सेवन से दुर्जल दोषसे उत्पन्न होने हरीतकी प्रतिविषासिन्धुसौवर्चलं वचा। वाला ज्वर नष्ट हो जाता है ।
हिङ्ग रेति कृतं चूर्ण पिबेदुष्णेन वारिणा ।। ( मात्रा--२ माशा ।)
आमातीसारशमनं ग्राहि चाऽग्निप्रबोधनम् ॥
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