Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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मिश्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
६४९
पलाश (ढाक)का क्षार, थूहरका क्षार, अपा- दोषानुसार औषधियोंके साथ पकाया हुवा मार्गका क्षार, इमलीका क्षार, आकका क्षार, तिल- | दूध जीर्ण ज्वर में उत्तम औषधका काम करता है। नालका क्षार, जवाखार और सज्जीखार; इस क्षार- (८७६९) क्षीरयोगः (३) समूहको "क्षाराष्टक" कहते हैं ।
(ग. नि. | ज्वरा. १) ये क्षार गुल्म, शूल और अ.र्णिको नष्ट | जीर्णज्वरे कफे क्षीणे क्षीरं स्यादमृतोपमम् । करते हैं।
| तदेव तरुणे पीतं विषवद्धन्ति मानवम् ॥ (८७६६) क्षीरगण्डूषः कृशोऽल्पदोषो दीनश्च नरो जीर्णज्वरान्वितः। (व. से. । तृषा. ; वृ. नि. र. । तृषा.)
पिपासातः सदाहो वा पयसा स मुखी भवेत् ।।
क्षीणकफ जीर्ण ज्वरमें दूध अमृतके समान क्षीरेक्षुरसमाकक्षौद्रसीधुगुडोदकैः ।।
गुणकारी है। परन्तु वही तरुण ज्वरमें विषके समान वृक्षाम्लाम्लैश्च गण्डूषास्तालुशोषप्रणाशनाः ॥
| मारक है। दूध, ईखका रस, मुनक्काका क्वाथ, शहद, ।
यदि दोष अल्प हों और पिपासा दाहादि सीधु और गुड़का शरबत समान भाग लेकर सबको
अधिक हों तो जीर्ण ज्वरके कृश रोगीको दूध एकत्र मिलाकर वृक्षाम्ल (इमली)से खट्टा करें।
| पिलानेसे लाभ होता है। इससे गण्डूष (कुल्ले) करनेसे तालुशोव नष्ट
(८७७०) क्षीरयोगः (४) . होता है।
(ग. नि. । वाजीकरणा.) (८७६७) शीरयोगः (१)
| गृष्टीनां वृद्धवत्सानां माषचूर्णभृतां गवाम् । (ग. नि. । पाण्ड्डा. ८)
| यत्क्षीरं तत्पशंसन्ति बलकामेषु जन्तुषु ।। लोहपात्रे शृतं क्षीरं सप्ताहं पथ्यभोजनः। । बड़े बछड़ेवाली प्रथम बारकी ब्याही हुई पिबेत् पाण्डामयी शोफी ग्रहणीदोषपीडितः॥ गायको चारेके साथ उड़दका आटा खिलाया जाय
लोह-पात्रमें पकाया हुवा दूध एक सप्ताह तक तो उसका दूध अत्यन्त बलकारक हो जाता है। पीने और पथ्याहार करमेसे पाण्डु, शोथ और (८७७१) क्षीरयोगः (५) ग्रहणी विकारमें लाभ होता है।
- (ग. नि. । उदरा. ३२) (८७६८) क्षीरयोगः (२) क्षीरं पित्तोदरं हन्ति पीतमुष्णं यथावलम् ॥
(ग. नि. । ज्वरा. १) ___बलानुसार उष्ण दूध पीनेसे पित्तोदर नष्ट यथादोषप्रशमनैरौषधैः साधितं पयः। होता है। सर्वज्वराणां जीर्णानां प्रोक्तं भैषज्यमुत्तमम् ॥ (अन्य खान पान बन्द रखना चाहिये।)
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