Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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वातव्याधि
‘पञ्चमो भागः (चि. प. प्र.)
६०१
नाशक
७४०२ शतावरीतैलम् कुजता, वामनता, पंगुता |
लेप-प्रकरणम् पीठविसर्पण | ७४४९ शतपुष्पादि लेपः अस्थि, सन्धि और कटि ७४०३ , , पंगुता, अंगका सिकुड़
की वायुको ३ दिनमें जाना आदि अनेक रोग
नष्ट करता है। ७४०४ , , वातव्याधि
७४७९ शुण्ट्यादि लेपः जानु तथा बाहूको पीड़ा। ७४३० श्वदंष्ट्रादितैलम् गृध्रसी, पादकम्पन, कटि ८७३६ क्षौदादि लेपः ऊरुस्तम्भ ।
पृष्ठ ग्रह ७९८१ सहचर तैलम् कुष्ठ नाशक, अस्थि, मज्जा
रस-प्रकरणम् और कर्णगत वायु,मूकता, ७५३८ शंखद्रावः तूणि, प्रतूणि, तीव्र पीड़ा पीठविसर्पण, अस्थिभंग
७६०१ शिलाजतुयोगः ऊरुस्तम्भ
आदि । ७९८४ , कष्ट साध्य वातव्याधि,
७६४२ शीतारि रसः वातव्याधि कम्प, आक्षेप, स्तम्भ, | ७६४९ शुण्ठि खण्डः आमवातनाशक, बलवशोषादि।
र्णायु वर्द्धक, बलि पलित ७९८५ सहचराध, समस्त वातकफज रोग। ७९८६ , , अपबाहुक, शिरः कम्पन ८१२९ सन्धिवातारि
अर्दित, मेदयुक्त वायु गुटिका कष्ट साध्य संधिवात, वातआदि ।
व्याधि ( सरल योग) ७९८९ सिद्धार्थक , सन्धिवात, एकांग शोथ, ८१५३ समीरगजकेसरी लड़खड़ाकर चलना। (
कुजता, खंजवात,गृध्रसी, द्धावस्थामें विशेष उप०)
कम्प, शोषादि वातव्याधि ७९९५ सुगन्धिततैलम् वातव्याधि ।
में विशेष उपयोगी ७९९८ सूत , बाहू कम्प, जंघाकम्प, ८१५४ समीरपन्नग रसः सन्धिग्रह (सोमलयुक्त
एकांग वात । ८००१ सैन्धवार्य ,, गृध्रसी, ऊरुस्तम्भादि।
८१५५ , मूर्छा, कष्ट साध्य वात ८००४ , , आमवात, शिरपीडा,पक्षा
व्याधि घात, सन्धिवात, अण्डगत
| ८१७९ साग कम्पारि रसः साग कम्प वायु, ऊरुस्तम्भ ।
८१८० सर्वांगसुन्दर चिता८५४९ हिमसागर , चोट की वेदना, बहुतसे
मणि रसः वातरोग।
वातव्याधि, अतिसार, संग्रहणी, ज्वर
रसः
योग)
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